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मकर संक्रांति: जानिए क्या है मकर संक्रांति मनाने की पौराणिक कथा?

मकर संक्रांति मुहूर्त:-

15 जनवरी 2020 (बुधवार)

पुण्य काल मुहूर्त = 06:50 से 06:01 (11 घंटे 12 मिनट)

महापुण्य काल मुहूर्त = 06:50 से 08:41 (1 घंटे 52 मिनट)

तिथि: 05, माघ, कृष्ण पक्ष, पंचमी, विक्रम सम्वत

मकर संक्रांति :-

मकर संक्रांति हिन्दुओं का अत्यंत विशेष पर्व है, यह सम्पूर्ण भारत तथा नेपाल में अलग अलग रूपों में मनाया जाता है। मकर संक्रांति पौष माह में सूर्य के मकर राशि पर आ जाने के कारण मनाया जाता है। यह त्योहार जनवरी माह की चौदहवीं या पंद्रहवीं तारीख को पड़ता है। इस दिन सूर्य धनु राशि को छोड़ कर मकर राशि में प्रवेश करता है।

मकर संक्रांति के विभिन्न नाम:-

भारत के ज़्यादातर उत्तरी तथा पश्चिमी राज्यों जैसे - छत्तीसगढ़, गोआ, ओड़ीसा, हरियाणा, बिहार, झारखण्ड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, राजस्थान, सिक्किम, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, बिहार, पश्चिम बंगाल, और जम्मू में इसे मकर संक्रांति के नाम से ही जाना जाता है। तमिलनाडु में यह पोंगल के नाम से जाना जाता है, गुजरात तथा उत्तराखंड में इसे उत्तरायण भी कहा जाता है। हरियाणा, हिमांचल में इसे माघी कहा जाता है तथा पश्चिम बंगाल में यह पौष संक्रांति के नाम से जाना जाता है। उत्तर प्रदेश तथा बिहार में इसे खिचड़ी पर्व भी कहा जाता है।

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मकर संक्रांति की पौराणिक कथा:-

श्रीमद्भागवत एवं देवी पुराण के अनुसार शनि महाराज का अपने पिता सूर्यदेव से बैर था, क्योकि सूर्यदेव ने अपनी दूसरी पत्नी छाया को पहली पत्नी संज्ञा के पुत्र यमराज से भेदभाव करते हुए देख लिया था। उसके बाद उन्होंने शनि और उनकी माता छाया को अपने से दूर कर दिया। इस से शनिदेव अत्यंत क्रुद्ध हुए और उन्होंने सूर्यदेव को कोढ़ होने का श्राप दे दिया। यमराज अपने पिता के इस श्राप को देखकर बहुत दुखी हुए और उन्होंने उनके श्राप से मुक्ति के लिए तपस्या की और उन्हें इस रोग से मुक्त किया। लेकिन सूर्य देव ने क्रोध से शनि देव के घर (राशि) कुम्भ को जला दिया, जिससे शनिदेव और उनकी माता को बहुत कष्ट हुआ। यमराज से उनका दुःख न देखा गया और उन्होंने सूर्यदेव से प्रार्थना कर शनिदेव को क्षमा करने के लिए कहा। तब सूर्य शनि के पास गए, अपने पिता को अपने घर आया देख शनिदेव ने काले तिलों से उनकी पूजा की, क्योकि उस समय उनके पास केवल काले तिल थे। सूर्यदेव शनिदेव की भक्ति से प्रसन्न हुए और उन्होंने अपने आशीर्वाद से उनके कष्टों को दूर कर दिया। और साथ ही यह आशीर्वाद दिया की जो कोई भी मेरी पूजा काले तिलों से करेगा, मैं सदा ही उसकी रक्षा करूँगा। तब से मकर संक्रांति पर सूर्यदेव के मकर राशि में आने के कारण उनकी पूजा काले तिलों से करने का विधान बन गया। 

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मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी:-

मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी दान करने तथा खाने की भी परम्परा है। कई जगह पर इस दिन मकई के भुने हुए दाने, गुड़, तिलचट्टी आदि प्रसाद के रूप में खाई जाती है। उत्तर प्रदेश तथा बिहार में इस दिन खिचड़ी का पर्व मनाया जाता है तथा मेला भी लगता है। इस दिन खिचड़ी बनाने से सम्बंधित एक कथा है। जब मुग़ल शासन के समय खिलजी भारत आया था तब उसने कई योगियों और मंदिरों पर आक्रमण किये थे। वह बाबा गोरखनाथ जी के योगियों पर भी हमले करता रहता था और इस कारण बाबा गोरखनाथ के शिष्य खाना बनाने और खाने का समय नहीं निकल पाते थे, इस से वह दुर्बल भी हो रहे थे। इस समस्या से निपटने के लिए बाबा गोरखनाथ ने अपने शिष्यों को आदेश दिया की समय बचने के लिए सभी अनाजों और संजियों को एकसाथ मिलाकर ही भोजन बनाएं। जब यह प्रयोग किया गया तो यह कारगर निकला, क्योकि वह भोजन अत्यंत स्वादिष्ट एवं पौष्टिक था और बनाने में भी कम समय लगता था। उस भोजन को उन्होंने खिचड़ी नाम दिया।  इस दिन गोरखनाथ जी के भक्त उन्हें खिचड़ी का भोग चढ़ाते हैं और प्रसाद स्वरुप बाँटते भी हैं।

मकर संक्रांति का महत्व:-

शास्त्रों के अनुसार, दक्षिणायण देवताओं के लिए रात्रि अर्थात नकारात्मकता का प्रतीक है तथा उत्तरायण उनके दिन के समान अर्थात सकारात्मकता का प्रतीक है। इसलिए इस दिन बड़े बड़े योगी, साधु और आमजन भी संगम स्थलों में, पवित्र नदियों में स्नान करने के लिए इक्कट्ठे होते हैं। इस दिन नदी में डुबकी लगाकर सूर्य को जल अर्पण करने से पुण्य प्राप्त होता है।  इस दिन दान धर्म का भी अत्यंत महत्व है, दान में किसी निर्धन अथवा ब्राह्मण को अन्न, कंबल, वस्त्र तथा धन आदि देने चाहिए जो सर्दियों में उनके काम आ सकें।

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