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महाभारतः- जानिये महाभारत के हर पात्र के जन्म का रहस्य !

महाभारत का इतिहास:-

महाभारत की शुरूआत कुरूवंश के राजा शान्तनु से हुई थी शान्तनु अपने पूर्व जन्म में महाभिषक थे पिछले जन्म में वह गंगा से प्रेम करते थे और इस जन्म में भी वह गंगा पर मोहित हो गये और उनसे विवाह भी किया।
सत्यवती:- सत्यवती महाभारत का बहुत ही अहम हिस्सा है सत्यवती का विवाह हस्तिनापुर नरेश शान्तनु से हुआ था इसका एक नाम मत्स्यगंधा भी था वह ब्रह्मा के श्राप से मत्स्य भाव को प्राप्त हुई एक अप्सरा अद्रिका नाम की थी जिसके गर्भ में​ उपरिचर वसु से उत्पन्न एक कन्या थी बाद में ही इस कन्या का नाम सत्यवती रखा गया।
पराशर:- ऋषि मुनि पराशर और सत्यवती की संतान ऋषि वेद व्यास जी थे श्री वेद व्यास जी ने महाभारत को लिखा था वेद व्यास ने सत्यवती के गर्भ से तब जन्म लिया था जब वह अविवाहित थी सत्यवती ने बाद में जाकर हस्तिनापुर के महाराज शान्तनु से विवाह किया था भीष्म पितामाह राजा शान्तनु के पुत्र थे जो कि गंगा के गर्भ से जन्में थे।

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ऋषि पराशर तथा सत्यवती की विचित्र कथा:- ऋषि पराशर एक दिन यमुना पार करने के लिये एक नाव पर बैठे उस नाव को सत्यवती चला रही थी सत्यवती अत्यंत सुंदर और कोमल थी ऋषि उसके यौवन को देखकर उसपर मोहित हो उठे उन्होंने निषाद कन्या सत्यवती से संभोग करने की इच्छा जताई सत्यवती को ये मंजूर न हुआ तथा वह बोली कि विवाह से पहले ऐसे संबंध अनुचित है एंवम मर्यादा के खिलाफ हैं पर ऋषि ने उसको मनाने की ठानी और सत्यवती संबंध बनाने के लिये मान गई पर उसने तीन शर्तें रखी पहली ये कि उन्हें ऐसा करते हुए कोई न देख पाए तो ऋषि ने एक अद्रिम द्वीप बना दिया दूसरी ये कि उनकी कौमार्यता भंग नहीं होनी चाहिए ऋषि ने उसे आश्वासन दिया कि संतान के जन्म के बाद उसकी कौमार्यता पहले जैसी हो जायेगी तीसरी ये कि उसकी मछली कि दुर्गंध सुगंध में बदल जाये ऋषि मुनि ने अपनी शक्तियों से उसकी दुर्गंध दूर कर दी और उसमें से सुगंध आने लगी सारी शर्तें पूरी हो जाने के बाद ही सत्यवती ने ऋषि पराशर के साथ संबंध बनाये तथा कुछ समय बाद उसे एक पुत्र हुआ जिसका नाम वेदव्यास था।

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राजा शान्तनु सत्यवती का विवाह तथा देवव्रत की भीष्म प्रतिज्ञा:- एक दिन यमुना तट पर राजा शान्तनु घूम रहे थे उन्हें नाव चलाती हुई सुंदर कन्या दिखी जिसके शरीर से बहुत सुगंध आ रही थी राजा उसकी ओर आकर्षित हुए उससे उसका नाम पूछा वह बोली कि वह सत्यवती है राजा फौरन उसके पिता के पास जा पहुँचे और सत्यवती के साथ विवाह का प्रस्ताव रखा परन्तु उसके पिता ने कहा कि आपको मुझसे एक वादा करना होगा जो पुत्र सत्यवती के गर्भ से उत्पन्न होगा उसे ही आप हस्तिनापुर का उत्तराधिकारी​ बनायेंगे ये सुनकर राजा अपने राज्य की ओर निराश मन से लौट गये सत्यवती के विरह में राजा मायूस रहने लगे दिन प्रतिदिन अस्वस्थ होने लगे अपने पिता की ये दशा देवव्रत से देखी न गई अपने मंत्रियों के माध्यम से जब उन्हें इसका कारण पता चला तो वह निषाद के घर पहुँच गये और निषाद से कहा कि हे निषाद आप अपनी पुत्री का विवाह मेरे पिता के साथ कर दें मैं आपको वचन देता हूँ जो बालक आपकी पुत्री के गर्भ से जन्म लेगा वही राज्य का उत्तराधिकारी बनेगा तथा उसका अधिकार कोई छीन न पाए इसलिए मैं अखण्ड प्रतिज्ञा लेता हूँ कि आजीवन अविवाहित रहूँगा ऐसी भीष्म प्रतिज्ञा के चलते राजा देवव्रत भीष्म पितामाह के नाम से प्रचलित हुए इस तरह उन्होंने अपने पिता की खुशी के कारण राज सिंघासन का त्याग कर दिया। 

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शान्तनु तथा सत्यवती की संतान:- शान्तनु तथा सत्यवती के दो पुत्र हुए चित्रांगद और विचित्रवीर्य ये दोनों भीष्म के सौतेले भाई थे इनकी बाल्यावस्था में ही राजा शान्तनु का देहांत हो गया था इसके बाद इन दोनों का पालन पोषण खुद भीष्म ने किया भीष्म ने बड़े होने पर चित्रांगद को राज गद्दी पर बैठा दिया लेकिन कुछ ही समय में गंधर्वों से युद्व करते हुए वह वीरगति को प्राप्त हुए इसके बाद भीष्म ने विचित्रवीर्य को राज्य सौंप दिया।

विचित्रवीर्य का विवाह तथा मृत्यु:- भीष्म ने विचित्रवीर्य का विवाह काशिराज की दो पुत्रियों अम्बिका तथा अम्बालिका से करवा दिया परन्तु दोनों पत्नियों से उनकी कोई संतान न हुई और क्षय रोग से ग्रस्त होकर उनकी मृत्यु हो गई विचित्रवीर्य की मृत्यु के पश्चात् सत्यवती ने अपने पुत्र वेदव्यास को बुलाया जो ऋषि पराशर से उत्पन्न संतान थी सत्यवती ने वेदव्यास से कहा कि वह विचित्रवीर्य की विधवा अम्बिका तथा अम्बालिका के साथ नियोग करे तथा संतान उत्पन्न करे और वेदव्यास ने अम्बिका तथा अम्बालिका से धृतराष्ट्र तथा पांडु को उत्पन्न किया और एक दासी से विदुर को उत्पन्न किया।

धृतराष्ट्र:- धृतराष्ट्र विचित्रवीर्य की पहली पत्नी अम्बिका के पुत्र थे जिसके पिता महर्षि वेदव्यास थे ये नेत्रहीन थे तथा इनके सौ पुत्र और एक पुत्री थे इनकी पत्नी गांधारी थी इनके सौ पुत्र ही कौरव कहलाये जिनमें दुर्योधन और दुशासन पहले दो पुत्र थे।
शकुनि तथा गांधारी:- शकुनि गंधार साम्राज्य का राजा था धृतराष्ट्र का साला और गांधारी का भाई था दुर्योधन की कुटिल नीतियों के पीछे शकुनि ही था उसने ही पांडवों के खिलाफ चालें चलने के लिए कौरवों को उकसाया। 
कुन्ती, पांडु, माद्री:- कुंती पांडवों की माता थी वह वसुदेव जी की बहन तथा श्री कृष्ण की बुआ थी कुंती को महाराज कुंतीभोज ने गोद लिया था वह पांडु की पहली पत्नी थी कुंती के पुत्र थे जिनका नाम युधिष्ठिर भीम अर्जुन कर्ण भी कुंती का ही पुत्र था जिसके पिता सूर्यदेव थे पांडु अम्बालिका और ऋषि वेदव्यास के पुत्र थे वह पांडवों के पिता थे जब हस्तिनापुर का राजा धृतराष्ट्र को बनाया जा रहा था तब विदुर ने कहा था कि एक नेत्रहीन हस्तिनापुर का राज्य कैसे संभालेगा तो पांडु को हस्तिनापुर का राजा घोषित किया गया राजा पांडु की दूसरी रानी का नाम माद्री था नकुल और सहदेव माद्री के ही पुत्र थे पारस में राजा शल्य की बहन थी माद्री।

द्रौपती के पाँच पुत्र थे:- द्रौपती का विवाह पाँच पांडवों से हुआ था वह पाँचों के साथ समय समय पर रमण करती थी हर वर्ष उसने एक पांडव पुत्र को जन्म दिया ऐसे द्रौपती के पाँच पुत्र थे जिनका नाम - युधिष्ठिर से जन्में प्रतिविन्ध्य, भीमसेन से जन्में सुतसोम, अजुर्न से जन्में श्रुतकर्मा, नकुल से जन्में शतानीक तथा सहदेव से जन्में श्रुतसेन थे।

युधिष्ठिर:- देविका युधिष्ठिर की दूसरी पत्नी थी, जिसने धौधेय नामक पुत्र को जन्म दिया था।
अर्जुन:- सुभद्रा उलूपी तथा चित्रांगदा ये अर्जुन की और तीन पत्नियां थीं सुभद्रा से अभिमन्यु, उलूपी से इरावत, चित्रांगदा से वभ्रुवाहन नामक पुत्र हुए।
भीम:- हिडिम्बा और बलन्धरा ये भीम की और दो पत्नियां थीं। हिडिम्बा से घटोत्कच और बलन्धरा से स्र्वंग उत्पन्न हुए।

नकुल:- करेणुमति नकुल की दूसरी पत्नी थी जिसने निरमित्र नामक पुत्र को जन्म दिया।
सहदेव:- विजया सहदेव की दूसरी पत्नी थी जिसका पुत्र सुहोत्र था।

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राजा परीक्षित:- परीक्षित अभिमन्यु और उत्तरा​ के पुत्र अर्जुन के पौत्र तथा जनमेजय के पिता थे एक बार राजा परीक्षित के सर पे कलयुग बैठ गया था जिसके प्रभाव से उसने ऋषि शमीक के गले में मृत सर्प डाल दिया था क्योंकि वह आखेट से थक गये थे और ऋषि से जल मांग रहे थे जो कि ब्रह्मा के ध्यान में लीन थे राजा को लगा कि ऋषि उसका अपमान कर रहे हैं इस घटना को जानकर श्रृंगी ऋषि जो कि ऋषि शमीक के पुत्र थे उसने परीक्षित को श्राप दिया कि उसे आज से 7वें दिन तक्षक सर्प डसेगा जिससे उसकी मृत्यु हो जायेगी राजा परीक्षित ने अपने अंतिम दिनों में श्री शुकदेव जी से श्रीमद् भागवत कथा सुनी और 7वें दिन तक्षक सर्प ने आकर उन्हें डस लिया परीक्षित की मृत्यु के बाद कलयुग आ गया पिता की मृत्यु के उपरांत जनमेजय ने सर्पसत्र किया जिसमें संसार के सभी सर्पों को यज्ञ की अग्नि में झोंक दिया गया था।


जनमेजय:- जनमेजय कुरूवंश का राजा था अभिमन्यु जिस समय युद्व में मारा गया था उस समय उसकी पत्नी गर्भवती थी जिसने राजा परीक्षित को जन्म दिया था जनमेजय इसी राजा परीक्षित तथा मद्रावती का पुत्र था जन्मेजय के छः और भाई थे जिनका नाम कक्षसेन उग्रसेन चित्रसेन इन्द्रसेन सुषेण तथा नख्यसेन था राजा परीक्षित की मृत्यु के बाद जनमेजय ही हस्तिनापुर की गद्दी पर विराजमान हुए।

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