रामसेतु जिसे हम सब एडेम्स ब्रिज के नाम से जानते हैं हिन्दू धर्म के अनुसार इस पुल का निर्माण भगवान विष्णु के सातवें अवतार भगवान श्री राम की वानर सेना ने भारत की दक्षिणी दिशा की ओर रामेश्वरम में बनाया था इसका दूसरा हिस्सा श्री लंका के मन्नार में जाकर जुड़ता है ऐसा माना जाता है कि इस पुल को बनाने में जिन पत्थरों का प्रयोग भगवान राम की वानर सेना ने किया था वह पत्थर समुद्र में फेंकने से डूबे नहीं थे लोगों का मानना है कि ये एक ईश्वर का धार्मिक चमत्कार है साइंस में इसका बिल्कुल विपरीत अर्थ है लेकिन सवाल यह उठता है कि अगर श्री राम ने रामसेतु नाम का कोई पुल बनवाया था तो अब वह कहाँ गया ?
हिन्दू मान्यताओं के अनुसार जब असुर सम्राट रावण माता सीता को हरण करके अपने साथ लंका ले गया था तब भगवान श्री राम ने वानरों की सहायता द्वारा समुद्र के बीच में एक पुल का निर्माण करवाया जो बाद में चलकर रामसेतु नाम से प्रसिद्व हुआ माना जाता है कि यह विशाल पुल वानर सेना ने केवल 5 दिनों में बना लिया था कहा जाता है कि इस पुल की लम्बाई 30 किलोमीटर तथा चैड़ाई 3 किलोमीटर थी आश्चर्य की बात है कि दोनों देशों के बीच मीलों की दूरी होते हुए भी इनके बीचो बीच इस पुल का निर्माण वानर सेना ने महज़ 5 दिनों में कैसे कर लिया यह विस्तार से जानने के लिये रामायण में इसका विस्तार पूर्वक वर्णन किया गया है।
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रामायण अनुसार - धार्मिक ग्रंथ रामायण के आधार पर जब लंका पति रावण श्री राम की पत्नी सीता का हरण करके उन्हें अपने साथ लंका ले गया था तब भगवान श्री राम ने अपनी पत्नी की खोज प्रारम्भ कर दी जटायु से श्री राम को पता चला कि उनकी पत्नी को एक ऐसा राक्षस राजा रावण हरण करके ले गया है जो मीलों दूर विशाल समुद्र के उस पार रहता है तब श्री राम ने फैसला किया कि वह स्वयं अपनी सेना के साथ लंका जाकर सीता को वापिस लायेंगे परन्तु ये सब होगा कैसे क्योंकि बीच में इतना विशाल समुद्र था परन्तु निश्चय अटल था इसलिये कुछ भी असम्भव नहीं था उस समुद्र को पार करने का कोई तो जरिया खोजना था फिर समुद्र देवता को प्रसन्न करने के लिये श्री राम द्वारा पूजा आरम्भ की गई कई दिनों तक पूजा करने के बाद भी जब समुद्र देवता प्रकट नहीं हुए तब क्रोधित होकर श्री राम ने धनुष बाण उठा लिये ये सब देखकर समुद्र देवता भयभीत हो उठे और प्रकट होकर बोले हे श्री राम आप अपनी वानर सेना की मदद से मेरे ऊपर एक पुल बनाइये मैं इन पत्थरों को डूबने नहीं दूँगा आपकी वानर सेना में दो सर्वश्रेष्ठ वानर हैं नल एवंम नील जिनमें से भगवान विश्वकर्मा के पुत्र नल हैं जिन्हें अपने पिता द्वारा वरदान हासिल है उनकी सहायता से आप मेरे ऊपर एक कठोर पुल का निर्माण करें यह पुल आपको और आपकी पूरी सेना को समुद्र पार करा देगा समुद्र देवता ने श्री राम से ऐसा विनम्र अनुरोध किया इसके बाद नल तथा नील की मदद से सम्पूर्ण वानर सेना अपनी योजनाएं बनाने में जुट गई योजना के मुताबिक बड़े बड़े पत्थर मोटी शाखाएँ तथा झाड़ियाँ लाई गई वैज्ञानिकों की मानें तो लगता है कि नल तथा नील जानते थे कि कौन सा पत्थर किस प्रकार रखा जाये जिससे कि कोई पत्थर समुद्र मेें डूबे नहीं और किस पत्थर को नीचे रखें और किसको ऊपर जिससे पत्थरों को एक दूसरे का सहारा मिल जाये और पुल बनाने में कोई भी बाधा न आये।
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वैज्ञानिकी कारण - वैज्ञानिकों ने इतने वर्षों के शोध के उपरान्त रामसेतु पुल में इस्तेमाल हुए पत्थरों के अंश खोज निकाले हैं वैज्ञानिकों की खोज के द्वारा ये साबित हुआ है कि इस पुल को बनाने में जिन पत्थरों का इस्तेमाल किया गया था वो किसी खास प्रकार के पत्थर थे जिन्हें आज ‘प्यूमाइस स्टोन‘ कहा जाता है इस प्रकार के पत्थर ज्वालामुखी के लावा से उत्पन्न होते हैं जब लावे की गर्मी वातावरण की कम गर्म वायु या जल से मिलती है तो वह खुद ही कुछ कणों में बदल जाती है ऐसे छोटे छोटे कण एक बड़े पत्थर का निर्माण करते हैं वैज्ञानिकों का मानना है कि अगर ज्वालामुखी का गर्म लावा वातावरण की ठंडी वायु से मिलता है तब वायु का संतुलन बिगड़ जाता है।
खंखरे पत्थर - इस प्रक्रिया द्वारा ऐसे पत्थरों को जन्म दिया जाता है जिनमें कई प्रकार के छिद्र होते हैं यह छिद्रों की वजह से स्पाॅजी अर्थात खंखरा आकार में परिवर्तित हो जाता है इसके कारण इनका वजन सामान्य पत्थरों से बहुत कम हो जाता है इन पत्थरों के छिद्रों में हवा भरी रहती है इसी कारण यह पत्थर पानी में जल्दी डूबता नहीं है हवा इसे ऊपर की ओर ही रखती है परन्तु जैसे जैसे उन छिद्रों में हवा के स्थान पर पानी भर जाता है तब इनका वज़न बढ़ने लगता है और यह पानी में डूबने लगते हैं इसी कारणवश रामसेतु पुल में प्रयोग किये गये पत्थर कुछ समय के बाद धीरे धीरे पानी में डूब गये तथा समुद्र के भूभाग तक पहुँच गये विश्व की सबसे विख्यात वैज्ञानिक संस्था नैशनल एरोनाॅटिक्स एंड स्पेस द्वारा सैटेलाइट की मदद से रामसेतु पुल को खोजा जा चुका है।
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इतिहास के मुताबिक वास्तव में एक ऐसा पुल ज़रूर बनाया गया है जो कि भारत के रामेश्वरम् से शुरू होकर श्री लंका के मन्नार द्वीप तक पहुँचता है परन्तु ऐसे बहुत से कारणों से यह पुल अपने आरम्भ से ही कुछ दूरी पर समुद्र में समा गया है रामेश्वरम् में कुछ समय पहले ही वैसे ही पत्थर मिले हैं जिन्हें ‘प्यूमाइस स्टोन‘ कहते हैं लोग यह भी मानते हैं कि यह पत्थर समुद्र के बहाव से किनारे पर आ गये हैं और यह मान्यता फैल गई कि यह वही पत्थर हैं जिनको रामसेतु पुल बनाने के लिये श्री राम की वानर सेना ने इस्तेमाल किया होगा परन्तु वैज्ञानिकों के द्वारा किये गये और एक शोध ने प्यूमाइस स्टोन नामक सिद्धांत को भी गलत साबित किया है कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि यह सच है कि प्यूमाइस स्टोन पानी में नहीं डूबते ऊपर ही तैरते रहते हैं तथा यह पत्थर ज्वालामुखी के लावे से बनते हैं परन्तु उनका यह भी मानना है कि रामेश्वरम् में दूर दूर तक सदियों से कोई ज्वालामुखी नहीं देखा गया है इसलिये रामसेतु पुल आज भी एक पहेली ही बना हुआ है।
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