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आमलकी एकादशी : जानिये कैसे मिलेगा हज़ार गौ दान का पुण्य ?

आमलकी एकादशी - 17 मार्च 2019 रविवार

तिथि प्रारम्भ - 23ः33 रात्रि (16 मार्च 2019 शनिवार)
तिथि समाप्त - 20ः51 रात्रि (17 मार्च 2019 रविवार)

तिथिः 26 फाल्गुन शुक्ल पक्ष एकादशी

आमलकी एकादशी का हिन्दू धर्म में बहुत महत्व है फाल्गुन माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को ही आमलकी एकादशी कहते हैं इस वर्ष यह व्रत 17 मार्च 2019 को रविवार के दिन होगा आमलकी का अर्थ होता है आंवला यह व्रत अत्यंत श्रेष्ठतम होता है ऐसी मान्यता है कि आंवले की शाख में देवता का वास होता है हमारी सृष्टि की रचना भगवान विष्णु ने की थी उन्होंने इसके लिये ब्रह्मा जी को जन्म दिया था तब ही उन्होंने आंवले के वृक्ष को भी अवतरित किया था कहा जाता है कि जो व्यक्ति स्वर्ग तथा मोक्ष की प्राप्ति चाहता है उसे फाल्गुन शुक्ल पक्ष की आमलकी एकादशी का उपवास अवश्य करना चाहिये आमलकी एकादशी के दिन लोग भगवान विष्णु की और आंवले के वृक्ष की पूजा करते हैं व उपवास रखते हैं आमलकी को ही आंवला कहा जाता है इस वृक्ष में भगवान विष्णु का वास होता है इस व्रत को करने से भगवान विष्णु की कृपा दृष्टि सदैव हम पर रहती है।

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आमलकी एकादशी का महत्व तथा लाभ:-

आमलकी एकादशी एक महत्वपूर्ण त्यौहार है हिन्दुओं में इसकी बहुत मान्यता है आमलकी एकादशी से ही माना जाता है कि होली का आरम्भ हो गया है भगवान को समर्पित करते हुए इस दिन पेड़ की पूजा करना बहुत ही शुभ माना जाता है इस व्रत को करने से हमें साक्षात् भगवान विष्णु के चरणों में स्थान प्राप्त होता है तथा बैकुण्ठ धाम के द्वार स्वतः ही खुल जाते हैं इस व्रत को करने से हमें हज़ार गौ दान का पुण्य प्राप्त होता है हिन्दू मान्यता के अनुसार लक्ष्मी जी को धन की देवी माना गया है इस दिन लक्ष्मी जी की पूजा अर्चना की जाती है इस दिन जो भी माता लक्ष्मी की आराधना करता है माता उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं श्रद्वालु इस दिन अपनी कोई भी इच्छा को ध्यान में रखकर ये व्रत करता है तो उसकी वह इच्छा अवश्य पूरी होती है ऐसा माना जाता है कि भगवान कृष्ण अपनी प्रेमिका राधा से मिलने के लिये आंवले के वृक्ष के पास जाया करते थे और वहाँ अपना समय व्यतीत करते थे इसलिये इस दिन की मान्यता और बढ़ जाती है जो भी व्यक्ति इस दिन आंवले के पेड़ के समक्ष खड़े होकर प्रार्थना करता है उसकी वह मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है औषधिय परिप्रेक्ष्य से भी आंवले का पेड़ बहुत लाभकारी होता है आंवला स्वास्थ्य के लिये भी लाभकारी होता है इस पेड़ से कई प्रकार की जड़ी बूटियाँ भी बनाई जाती हैं जो हमारे स्वास्थ्य के लिये अति उत्तम होती हैं आंवले से हमें विटामिन सी प्राप्त होता है आंवला आधुनिक दवाओं को बनाने में भी प्रयोग किया जाता है।  

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आमलकी एकादशी व्रत विधि:-

आमलकी एकादशी का व्रत करने वाले व्रती को एक दिन पहले दशमी की रात को भगवान विष्णु का ध्यान करके सोना लाभकारी होता है यह व्रत स्वयं ही बहुत लाभकारी होता है प्रातः काल सुबह उठकर स्वच्छ जल के साथ स्नान आदि करें किसी तालाब या नदी में भी स्नान कर सकते हैं इसके बाद भगवान विष्णु की प्रतिमा के सम्मुख खड़े होकर जल तिल कुश और मुद्रा लेकर ये प्रण लें कि मैं भगवान विष्णु की कृपा से मोक्ष की कामना करते हुए ये व्रत रखता हूँ भगवान विष्णु का ध्यान करके मंत्रों का उच्चारण प्रारम्भ करें इस व्रत में पूजा सामग्री के साथ आंवले के वृक्ष की पूजा करनी चाहिये वृक्ष के आसपास की भूमि को साफ करके वहाँ पे गाय के गोबर से लेप करना चाहिये पेड़ की जड़ में एक कलश स्थापित करें तथा समस्त देवी देवताओं को आमंत्रित करें कलश में पंच तंत्र व सुगंधी रखें पंच पल्लव इसके ऊपर रखकर दीपक जलायें कलश पर चंदन का लेप करके कपड़े से सजायें श्री विष्णु जी के छठे अवतार श्री परशुराम की मूर्ति स्थापित करें और विधि पूर्वक भगवान परशुराम की पूजा करें रात्रि के समय भगवत गीता पढ़ें या भजन कीर्तन करते हुए अपना समय प्रभु के चरणों में व्यतीत करें अगली सुबह द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन करायें तथा वह कलश किसी ब्राह्मण को भेंट कर दें तत्पश्चात् व्रत खोलने के लिये अन्न तथा जल ग्रहण कर लें। 

आमलकी एकादशी पौराणिक कथा:-

पुराणों के अनुसार आमलकी एकादशी से जुड़ी यह कथा बहुत प्रचलित है एक समय की बात है महर्षि वशिष्ठ जी से मांधाता ने कुछ ऐसी कथा सुनाने का अनुरोध किया जिससे उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हो सके तब महर्षि ने मांधाता को ये कथा सुनाई बहुत समय की बात है वैदिश नाम का एक नगर था जहाँ क्षत्रिय वैश्य ब्राह्मण तथा शूद्र चारों धर्म के लोग प्रेम सहित रहते थे इस नगर में कहीं भी नास्तिक दुराचारी पापी कोई नहीं था वहाँ चंद्रवंशी नाम का एक राजा राज्य करता था चंद्रवंशी अत्यंत बुद्विमान गुणवान व धर्मात्मा राजा था इस नगर का कोई भी व्यक्ति दरिद्र नहीं था यहाँ रहने वाली सारी प्रजा भगवान विष्णु की भक्त थी तथा बालक वृद्व स्त्री व पुरूष सभी आमलकी एकादशी का व्रत संपूर्ण भक्ति भाव से रखते थे फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन राजा तथा प्रजा सभी ने आमलकी एकादशी का व्रत रखा राजा अपनी प्रजा के साथ पूर्ण निष्ठा से मंदिर में जाकर धूप दीप पंचतंत्र तथा प्रसाद के साथ आंवले की पूजा अर्चना करने लगे अचानक कहीं से एक भूखा शिकारी आ गया और वहाँ आकर बैठ गया और पूरी कथा सुनी उसके कुछ दिन बाद उसकी मृत्यु हो गई और उसने किसी राजा के घर जन्म लिया उसके जीवन में धन बल अन्न किसी भी वस्तु की कोई कमी नहीं थी एक समय वह एक जंगल में थका हारा विश्राम करने के लिये एक वृक्ष की छांव में जाकर सो गया वह जिन लोगों से युद्व करके आया था अब उनके मित्र व प्रियजन वहाँ आ गये और उसे मारने का प्रयास करने लगे अचानक वहाँ एक देवी प्रकट हुई पलक झपकते ही उस देवी ने उन सभी का सर्वनाश कर दिया तब उस राजा की निंद्रा टूटी तो वह आश्चर्यचकित होकर बोला कि इन सबको किसने मारा और मेरी रक्षा किसने की तभी एक आकाशवाणी के द्वारा एक घोषणा हुई कि यह तुम्हारे पिछले जन्म के आमलकी एकादशी करने का फल है भगवान विष्णु ने स्वयं तुम्हारी रक्षा की है तभी से यह व्रत किया जाने लगा इस व्रत का फल एक हज़ार गौ दान के बराबर होता है।

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