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राम हनुमान मिलन की कहानी जानिए कैसे हुई हनुमान जी और प्रभु श्री राम की प्रथम भेंट

जब कभी भी प्रभु भक्ति की मिसाल दी जाती है तब सदैव ही निर्विरोध सर्वप्रथम हनुमान जी का नाम आता है। हनुमान जी सोते जागते, उठते बैठते बस एक ही नाम रटा करते थे- राम राम राम राम राम राम....... किन्तु हनुमान जी ने उन्हें सदैव से नहीं देखा था, वे बिना उन्हें देखे उनसे मिलने की आस में ही उनकी भक्ति में डूबे रहते थे। जो भक्त अपने प्रभु के दर्शनों को व्याकुल हो और उनसे मिलने की आस लिए बैठा हो, कैसा अदभुत क्षण होगा वो जब स्वयं प्रभु उनसे मिलने उनके सामने आ जाएँ। आइये जानते हैं राम और हनुमान के प्रथम मिलन की ये अदभुत गाथा-  ​

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सुग्रीव का भय :-

हनुमान जी ऋष्यमूक पर्वत पर राजा सुग्रीव के साथ उनके मित्र और रक्षक बनकर रहते थे। बाली के राज पाठ छीन लेने से वह सदैव भयभीत रहते की कहीं बाली किसी को उसे मारने के लिए न भेज दे। इसी प्रकार एक दिन प्रभु श्री राम और लक्ष्मण माता सीता की खोज करते हुए ऋष्यमूक पर्वत पर पहुंच गए। सुग्रीव के गुप्तचरों ने उसे बताया कि दो तेजस्वी ब्राह्मण इसी पर्वत पर बढ़े जा रहे हैं, किन्तु दोनों के हाथों में धनुष है और दोनों ही बलवान प्रतीत होते हैं। यह सुनकर सुग्रीव डर गया, उसे लगा बाली ने ही इन दोनों को भेष बदल कर मुझे मारने भेजा है।

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हनुमान जी ने सुग्रीव को शांत कराते हुए बोला की मेरे होते हुए आप घबराएं नहीं, मैं स्वयं जाकर उनका परिचय पूछता हूँ। सुग्रीव ने भी कहा हाँ हनुमान तुम जाकर पता करो वे दोनों ब्राह्मण यहां किस उद्देश्य से आये हैं, और यदि कोई संकट प्रतीत हो तो मुझे संकेत दे देना मैं यहां से भाग जाऊंगा।

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हनुमान जी ने धरा ब्राह्मण का भेष:-

इस प्रकार सुग्रीव को आश्वस्त कर वे ब्राह्मण के भेष में श्री राम और लक्ष्मण के सामने पहुंचे। दोनों ही राजकुमारों का दिव्य तेज देखकर उनके मन में प्रेम का सागर उमड़ रहा था, किन्तु अपना कर्तव्य निभाने के लिए उन्होंने खुद को नियंत्रित किया और हाथ जोड़कर दोनों राजकुमाओं का स्वागत किया। उन्होंने कहा हे ब्राह्मण देव आप दोनों कौन हैं? और इस दुर्गम पर्वत में क्या कर रहे हैं? आप दोनों देखने में राजकुमार प्रतीत होते हैं, और आपके पाँव भी अत्यंत कोमल हैं, आप दोनों इस प्रकार नग्न पैरों से इस कंटीले वन में किस उद्देश्य से आये हैं?

भक्त और भगवान का अदभुत मिलन :-

उनकी मनमोहक बातों को सुनकर राम जी मन में मुस्काये और उन्होंने कहा मैं अयोध्या नरेश दशरथ का पुत्र राम हूँ और ये मेरा अनुज लक्ष्मण है। मेरी पत्नी सीता का किसी दुष्ट ने अपहरण किया है, हम उसी को ढूंढने के उद्देश्य से यहां आये हैं, अब आप अपना परिचय भी दीजिये ब्राह्मण देव।

अपने आराध्य श्री राम को देखते ही हनुमान जी के हाथ स्वतः जुड़ गए, उनका शीश स्वतः झुक गया और उनकी आँखों से अश्रुधारा बहने लगी। वह अपने असल स्वरुप में आये, और बोले प्रभु मैं आपका सेवक हनुमान हूँ। बचपन से आज तक केवल आपसे मिलने की और आपकी सेवा करने की आस में जी रहा हूँ। मुझे अपना आशीर्वाद देकर मेरे जीवन को सफल बनाइये प्रभु। प्रभु ने हनुमान जी को आशीर्वाद दिया और उन्हें गले से लगा लिया, क्योकि जितना हनुमान जी श्री राम से मिलने के लिए आतुर थे उतना ही श्री राम भी अपने परम भक्त हनुमान से मिलने के लिए बैचैन थे। इस प्रकार वहां का वातावरण सुख, करुणा और दिव्यता से भर गया। लक्ष्मण भी इस दृश्य को देखकर प्रसन्नता के साथ साथ हैरत में पड़ गए।​