इससे यह सिद्ध होता है कि सर्वप्रथम महादेव ने ही धरती पर जीवन के प्रचार प्रसार का प्रयास किया था इसीलिये इन्हें आदिदेव भी कहते हैं, आदि का अर्थ है प्रारम्भ, इन्हें आदिनाथ भी कहते हैं, आदिनाथ होने के कारण ही उनका नाम आदिश भी है, ’आदिश’ शब्द से ही ’आदेश’ शब्द बना है, नाथ साधु जब मिलते हैं तो ’आदेश’ कहते हैं।
भगवान शिव के अलावा ब्रह्माजी और भगवान विष्णु ने समस्त धरती पर जीवन की उत्पत्ति का और उसके पालन का कार्य किया था, इन्होंने मिलके ही धरती को रहने के लायक बनाया और यहाँ पर देवता, दैत्य, दानव, गंधर्व, यक्ष और मनुष्य की आबादी को बढ़ाया था।
महाभारत कालः-
मान्यता है कि जब महाभारत काल हुआ करता था तब तक देवता धरती पर रहते थे, महाभारत के पश्चात् वे सभी अपने अपने धाम चले गये, कलयुग के आरम्भ से ही देवता गण सब विग्रह रूप में ही रह गये और उनके विग्रहों को पूजा जाने लगा।
पहले शिव थे रूद्रः-
वैदिक काल के रूद्र व अन्य स्वरूप और जीवन दर्शन को विस्तार पुराणों में मिला, वेद जिसे रूद्र कहते हैं, पुराणों में इन्हें शंकर और महेश कहते हैं, वराह काल के पूर्व काल में भी भगवान शिव थे उन कालों में महादेव की अलग गाथा है।
ब्रह्मा ने बनाये विशालकाय मानवः-
नैशनल ज्योग्राफी की टीम ने सन् 2007 में भारत व अन्य जगह पर 20 से 22 फीट के मानव कंकाल ढूंढ़ निकाले हैं, भारत में पाये गये इन कंकालों को लोग भीम पुत्र घटोत्कच और बकासुर का कंकाल मानते हैं।
हिन्दू धर्म में यह वर्णित है कि सतयुग में इसी तरह के विशालकाय मानव हुआ करते थे, जब त्रेतायुग आया तब इनकी प्रजाति नष्ट हो गई, हमारे पुराणों के अनुसार भारत में दानव, राक्षस, दैत्य और असुरों की जाति का अस्तित्व था, जो इतने ही विशालकाय हुआ करते थे।
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इन कंकालों के साथ ही भारत में एक शिलालेख भी मिला है, उस काल का यह ब्राह्मी लिपि का शिलालेख है, इसमें लिखा है कि मनुष्यों में शांति स्थापित करने के लिये ब्रह्मा जी ने विशेष आकार के लोगों की रचना की थी, ऐसे विशेष प्रकार के लोगों की रचना केवल एक बार ही हुई थी, ऐसे लोग बहुत शक्तिशाली हुआ करते थे किसी भी वृक्ष को वे अपनी भुजाओं की शक्ति से उखाड़ सकते थे, परन्तु इन लोगों ने अपनी शक्तियों का दुरूपयोग करना शुरू कर दिया और आपस में लड़ने के बाद देवताओं को भी चुनौती देने लगे, भगवान शिव ने अंत में इन सभी को मार डाला और इसके पश्चात् ऐसे मनुष्यों की रचना फिर कभी नहीं हुई।
शिव का धनुष पिनाकः-
महादेव ने जो धनुष बनाया था उसकी टंकार से ही बादल फट जाते थे और पर्वत हिल जाते थे, ऐसा प्रतीत होता था जैसे की कोई भूकंप आ गया हो, शिव जी का यह धनुष बहुत अधिक शक्तिशाली था, इसके एक तीर से ही त्रिपुरासुर की तीनों नगरियों को ध्वस्त कर दिया था, यह ’पिनाक’ धनुष था, देवी देवताओं के काल की समाप्ति के बाद पिनाक धनुष को देवरात को सौंप दिया गया था।
राजा दक्ष ने एक यज्ञ किया जिसमें भगवान शिव का कोई भाग नहीं रखा गया इसी कारण महादेव बहुत क्रोधित हो उठे थे उन्होंने अपने पिनाक धनुष से सभी देवताओं को नष्ट करने की ठान ली, एक ही टंकार से धरती का वातावरण बहुत भयानक हो गया था, बड़ी ही मुश्किलों से उनका ये क्रोध शांत किया गया था फिर ये धनुष शिव जी ने देवताओं को दे दिया था।
देवताओं ने इसे राजा जनक के पूर्वज देवरात को दे दिया था, राजा जनक के पूर्वजों में निमि के ज्येष्ठ पुत्र देवराज थे, उन्हीं के पास शिव धनुष धरोहरस्वरूप राजा जनक के पास सुरक्षित था, भगवान शिव ने इस धनुष को स्वंय अपने हाथों से बनाया था, महादेव के इस विशालकाय धनुष को कोई भी उठाने की क्षमता नहीं रखता था परन्तु श्री राम ने इसे उठाकर इसकी प्रत्यंचा चढ़ाई और इसे एक ही झटके में तोड़ दिया।
शिव का चक्रः-
इस चक्र को छोटा परन्तु सबसे अचूक अस्त्र माना जाता था, सभी देवी देवताओं के पास अपने अपने अलग चक्र होते थे जिन सभी के अलग अलग नाम होते थे, विष्णु जी के चक्र का नाम कांता चक्र, शंकर जी के चक्र का नाम भरवेंदु और देवी का चक्र मृत्यु मंजरी के नाम से जाना जाता था, भगवान कृष्ण के नाम के साथ सुदर्शन चक्र का नाम अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है।
सुदर्शन चक्र का निर्माण भगवान शिव ने किया था यह तथ्य बहुत कम लोग ही जानते हैं, प्रामाणिक व प्राचीन शास्त्रों के अनुसार इसका निर्माण महादेव ने ही किया था, निर्माण करने के बाद शिव जी ने इसे भगवान विष्णु को सौंप दिया था, बाद में ज़रूरत पड़ने पर विष्णु जी ने इसे देवी पार्वती को सौंप दिया था, देवी पार्वती ने इसे परशुराम को दे दिया था फिर परशुराम ने यह सुदर्शन चक्र श्री कृष्ण को दे दिया था।
त्रिशूलः-
पुराणों के अनुसार भगवान शिव शंकर के पास कई प्रकार के अस्त्र शस्त्र थे परन्तु उन्होंने अपने सभी अस्त्र और शस्त्र देवताओं को सौंप दिये थे, उनके अपने पास केवल एक त्रिशूल ही हुआ करता था, यह बहुत ही घातक व अचूक अस्त्र था, त्रिशूल तीन प्रकार के कष्टों दैविक, भौतिक व दैनिक के विनाश का सूचक है, जिसमें तीन प्रकार की शक्तियाँ हैं- सत, रज और तम, प्रोटाॅन, न्यूट्राॅन और इलैक्ट्राॅन, इनके अलावा शिव जी का अस्त्र पाशुपतास्त्र भी है।
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शिव का सेवक वासुकीः-
नागवंशियों से शिव जी को बहुत ही लगाव था, भगवान शिव के क्षेत्र हिमालय में ही नाग कुल के सभी लोग रहते थे, कश्मीर का अनंतनाग इन नागवंशियों का ही गढ़ था, नागकुल के सभी मनुष्य शैव धर्म का पालन करते थे, प्रारम्भ में नागों के 5 कुल थे, जिनके नाम इस प्रकार हैं- शेषनाग (अनंत), वासुकी, तक्षक, पिंगला और कर्कोटक, ये शोध के विषय हैं कि ये लोग सर्प थे या मानव या आधे मानव आधे सर्प ? मगर इन्हें देवताओं की श्रेणी में रखा गया था तो निश्चय ही वो मनुष्य नहीं होंगे।
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’शेषनाग’ को नाग वंशावलियों में नागों का प्रथम राजा माना जाता है और शेषनाग को ही ’अनंत’ नाम से भी जाना जाता है, ये भगवान विष्णु के सेवक थे, ऐसे ही आगे चलकर शेष के बाद वासुकी हुए, जो शिव जी के सेवक बने, बाद में तक्षक और पिंगला ने राज्य को संभाला, कैलाश पर्वत के पास ही वासुकी का राज्य था, माना जाता है कि तक्षक ने ही तक्षकशिला बसाकर अपने नाम से ही ’तक्षक’ कुल चलाया था, ये पाँचों गाथाएं पुराणों में पाई जाती हैं।
इसके बाद ही कर्कोटक, ऐरावत, धृतराष्ट्र, अनत, अहि, मनिभद्र, अलापत्र, कम्बल,अंशतर, धनंजय, कालिया, सौंफू, दौद्विया, काली, तखतू, धूमल, फाहल, काना इत्यादि नाम से नागों के वंश हुए जिनके भारत के भिन्न भिन्न इलाकों में राज्य हुआ करते थे।
अमरनाथ के अमृत वचनः-
मोक्ष के हेतु शिव ने अपनी अर्धांगिनी को अमरनाथ की गुफा में जो ज्ञान दिया था उसी ज्ञान की आज अनेकों शाखाएं हो गई हैं, जो ज्ञानयोग व तंत्र के मूल सूत्रों में शामिल है।
भगवान शिव ने पार्वती को 112 ध्यान सूत्रों का ज्ञान दिया था जो ’विज्ञान भैरव तंत्र’ में बताये गये हैं, योगशास्त्र के प्रवर्तक भगवान शिव के ’विज्ञान भैरव तंत्र’ और ’शिव संहिता’ में उनकी संपूर्ण शिक्षा और दीक्षा समाई हुई है, तंत्रों के कई प्रकार के ग्रंथों में उनकी शिक्षा का विस्तार हुआ है, महादेव के योग को तंत्र या वामयोग कहते हैं, एक शाखा इसी की हठयोग भी है, भगवान शिव कहते हैं- ’वामो मार्गः परमगहनो योगितामप्यगम्यः’ अर्थात वाम मार्ग अत्यंत गहन है और योगियों के लिये भी अगम्य है।- मेरूतंत्र
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