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अवतार नहीं फिर कौन है साई ? (who is sai?)

सांई बाबा एक ऐसे बाबा हैं जिनके लाखों भक्त हैं उनमें हिन्दू भी हैं और मुस्लिम भी लगभग सभी धर्मों के व्यक्ति सांई के भक्त हैं, परन्तु कुछ समय से सांई बाबा पर सवाल उठाये जा रहे हैं कि वह हिन्दू थे या मुसलमान, हिन्दू धर्म में कुछ ऐसे गुरू हैं जिन्होंने सांई को भगवान मानने से इंकार किया है व उनका विरोध किया है, उनका कहना है कि सांई कोई भगवान नहीं बल्कि एक साधारण मनुष्य थे जिन्हें लोगों ने भगवान बना दिया है, इस सवाल के पीछे का कारण ये है कि शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती का कहना है कि सांई बाबा मुस्लिम थे इसलिये उनकी मूर्ति मंदिर में नहीं लगनी चाहिये फिर सवाल यही उठता है कि आखिर सांई बाबा कौन थे ?

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कुछ तथ्यों के आधार पर हम जानने की कोशिश करते हैं कि सांई बाबा जो सभी धर्मों को एक समान मानते थे, वह हिन्दू थे या मुस्लिम-
माना जाता है कि सांई बाबा कौन थे उनके माता पिता कौन थे इनके बारे में कोई भी पुख्ता सुबूत नहीं मिल पाये हैं, सांई को 1854 में पहली बार शिरडी में देखा गया था, उस समय वह केवल 16-17 साल के रहे होंगे, सांई बाबा ने अपने जीवन का ज्यादातर समय एक मस्जिद में बिताया था जिसे द्वारका माई कहते हैं, सांई अपने सिर पर सफेद कपड़ा बांधकर फकीर का भेष बनाकर शिरडी में धूनी रमाये रहते थे, सांई के इसी रूप के कारण ज्यादातर लोग इन्हें मुस्लिम मानते हैं, पर उनके माथे पर लगे चंदन के तिलक को देखकर कुछ लोग इन्हें हिन्दू मानते हैं।​

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सांई बाबा ने ’सबका मालिक एक’ जैसी विचारधारा पर बल दिया है, हिन्दू और मुस्लिम सभी से एक समान व्यवहार करने का संदेश दिया है, उन्होंने अपने पूरे जीवन को अपने भक्तों के नाम कर दिया था, सांई अपने भक्तों से बहुत प्रेम करते थे और सभी धर्म के त्यौहारों को बड़ी धूमधाम से मनाया करते थे, उनके भक्तों के अनुसार सांई ने अपने जीवन में बहुत से अद्भुद चमत्कार किये थे।

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सांई बाबा ने खुद को कभी भी किसी धर्म या जाति से नहीं जोड़ा था परन्तु आज उन्हीं के धर्म पर प्रश्न चिन्ह् लगा दिया गया है, जो सांई के हिन्दू भक्त हैं वे उन्हें शिव और दत्तात्रेय का अवतार मानते हैं, जानकार मानते हैं कि सांई बाबा धूनी रमाते थे, उन्होंने अपने कानों में छेद करवा रखा था, ऐसा शैव या नाथपंथी धर्म के लोग ही करते हैं, और इसके अलावा हुक्का पीना, भिक्षा अर्जन करना व हाथ में कमंडल भी उनके नाथपंथी होने की ओर ही इशारा करते हैं, प्रत्येक सप्ताह उनका विट्ठल (श्री कृष्ण) के नाम पर कीर्तन करना और माथे पर चंदन का तिलक लगाना, यह सब उनके हिन्दू होने का प्रमाण देते हैं।
पर जो लोग सांई को मुस्लिम मानते हैं उनके भी अपने अलग तर्क हैं, सर्वप्रथम यह कि उनके नाम के साथ सांई जोड़ना उन्हें मुसलमान बनाता है, फारसी भाषा में सांई का अर्थ संत होता है, सांई को यह उपाधि शिरडी के एक पुजारी ने दी थी, सांई बाबा का पहनावा एक मुसलमान फकीर जैसा था, वह हमेशा मस्जिद में ही रहते थे, भोजन करने से पहले मौलवी से फातिहा पढ़ने के लिये बोलना, ये सभी संकेत इस ओर इशारा करते हैं कि सांई एक मुस्लिम थे।​

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सांई बाबा ने किसी की कोई भी बात पर ध्यान नहीं दिया उनका कहना था कि मनुष्य का सबसे बड़ा धर्म होता है प्रेम, और यह गुण तो सांई में कूट कूट कर भरा हुआ था, अपने प्रेम और करूणा भाव से ही उन्होंने लाखों हिन्दू और मुस्लिमों की सेवा की थी और उनका प्रेम व भक्ति भाव अर्जित किया, उन्होंने केवल सत्य और प्रेम के रास्ते पर चलकर मानवता की सेवा की है, उनके समझाये गये रास्ते पर चलकर हम भी अपना जीवन धन्य बना सकते हैं, हम सभी को उनके गुणों को अपनाना चाहिये और अपना जीवन सफल बनाना चाहिये न कि उनके नाम पर धर्म की लड़ाई लड़नी चाहिये।

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