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परशुराम ने क्यों किया धरती को 21 बार क्षत्रिय विहीन ? (Why did Parashuram Kill the Kshatriyas from the Earth for 21 Times )

भगवान परशुराम जी एक ब्राह्मण थे, और हर प्रकार के शस्त्र चलाने में निपुण थे। वह श्री हरी विष्णु के छठे अवतार माने जाते है। उन्होंने उस काल के अधर्मी और निरंकुश क्षत्रिय राजाओं का 21 बार सर्वनाश किया। लेकिन भगवान परशुराम ने ब्राह्मण होते हुए भी क्यों  ऐसा कृत्य किया? समझते हैं इस कहानी के साथ-​

सहस्त्रार्जुन का बढ़ता हुआ अत्याचार :-

हैहय वंश के राजा कार्तवीर्य और रानी कौशिक का पुत्र था राजा सहस्त्रार्जुन। वह महिष्मति साम्राज्य का राजा था और अत्यंत शक्तिशाली था। उसने भगवान दत्तात्रेय की तपस्या कर उनसे वरदान स्वरुप दस हज़ार भुजाओं  का आशीर्वाद माँगा था।

दस हज़ार हाथ होने से वह अकेला ही दस हज़ार शक्तिशाली राजाओं के बराबर शक्तिशाली हो गया था और इसी कारण वह अपनी शक्ति के मद में अत्याचारी हो गया। वह प्रतिदिन अधर्म करता था, ऋषियों के आश्रम उजाड़ना, यज्ञ और हवनों को नष्ट करना, निर्धनों और ब्राह्मणों को सताना उसका कार्य था। उसके अत्याचार से सभी प्रजा दूसरे राज्यों में कूच करने लगी, किन्तु जब उसे इस बात का पता चला तो उसने उन निर्दोष नागरिकों की भी हत्या कर दी। अपने राज्य की स्त्रियों की पवित्रता ​ को भी वह अपने मनोरंजन के लिए नष्ट कर देता था।

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कामधेनु को प्राप्त करने की लालसा :-

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एक बार सहस्त्रार्जुन अपनी सेना के साथ किसी राज्य पर आक्रमण के लिए निकला था। रास्ते में कई पहाड़ व घने जंगल पार करते हुए उसकी सेना थक गयी, इसलिए उसने विश्राम करने का निर्णय लिया और एक आश्रम पंहुचा। यह अद्भुत आश्रम परशुराम जी के पिता महर्षि जमदग्नि का था, उस समय परशुराम जी जंगल में लकड़ी लेने के लिए गए थे। महर्षि ने आये हुए अतिथियों का स्वागत किया और सत्कार के लिए उनके भोजन का प्रबंध करने लगे। सहस्त्रार्जुन को लगा की ये ऋषि सम्पूर्ण सेना के भोजन की व्यवस्था नहीं कर पायंगे किन्तु महर्षि ने स्वर्गलोक से प्राप्त कामधेनु की सहायता से सबके भोजन की व्यवस्था कर दी। कामधेनु ​की दिव्यता के आगे सहस्त्रार्जुन को अपना सांसारिक संतोष निम्न लगने लगा​। उसने उस दिव्य गाय को बलपूर्वक ऋषि से छीन लिया किन्तु कामधेनु उसके हाथ से छूटकर स्वर्ग की ओर प्रस्थान कर गयी। इस से वह क्रोधित हो गया और उसने सभी ऋषियों को मारना पीटना शुरू कर दिया तथा सारा आश्रम तहस नहस कर दिया।​

परशुराम द्वारा सहस्त्रार्जुन का वध :-

उनके जाने के बाद परशुराम जी वहां आये और आश्रम की ऐसी हालत देख कर माँ से पूछा की किसने ऐसी धृष्टता की। माता ने सब कुछ बताया, अपने पिता के अपमान से क्रुद्ध हो परशुराम जी ने सहस्त्रार्जुन और उसकी सम्पूर्ण दुष्ट सेना का संहार करने की प्रतिज्ञा कर ली​ और अपना परशु उठाकर उसका पीछा करने लगे।

उन्होंने सहस्त्रार्जुन को युद्ध के लिए ललकारा और उन दोनों के बीच भयंकर युद्ध शुरू हो गया। सहस्त्रार्जुन, जिसने रावण जैसे शक्तिशाली राजा को भी अपने बल से पराजित किया था, परशुराम जी के शौर्य के आगे टिक न सका। और परशुराम जी ने एक एक कर उसकी सभी भुजाएं काट दी और अंत में उसका शीश भी काट दिया।

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महर्षि जमदग्रि की हत्या :-

महर्षि जमदग्नि ने परशुराम जी को शांत किया और मनुष्य हत्या के पाप के प्रायश्चित हेतु​ उनको तीर्थ दर्शन​ पर भेज दिया। उनके आश्रम में न होने की सूचना पा कर सहस्त्रार्जुन के पुत्रों ने उसकी हत्या का प्रतिशोध लेने के लिए महर्षि जमदग्नि की हत्या कर दी। और अंत में अन्य ऋषियों को भी उन्होंने मार डाला और सम्पूर्ण आश्रम जला डाला।​

परशुराम की प्रतिज्ञा :-

अपने पति की हत्या से व्याकुल माता रेणुका ने परशुराम जी को विलापग्रस्त स्वर में पुकारा। अपनी माता की करुण पुकार सुन परशुराम जी जल्द ही आश्रम पहुंच गए, वहां उन्होंने अपने पिता का कटा हुआ शीश देखा और पास ही अपनी माता को विलाप करते हुए देख वे अत्यंत क्रोधित हो गए। अपने पिता के शरीर पर 21 घाव देख उन्होंने शपथ ली की 21 बार वह इस पृथ्वी से पापी और अधर्मी क्षत्रियों का संहार कर देंगे।

और पुराणों में उल्लेख किया गया है की परशुराम जी ने अपनी शपथ निभाई थी, उन्होंने कुल 21 बार इस पृथ्वी से अत्याचारी और निरंकुश क्षत्रियों का अकेले ही सर्वनाश किया था। उस समय क्षत्रियों के रक्त से पांच सरोवर भर गए थे। तब महर्षि ऋचीक ने भगवान परशुराम को ऐसा करने से रोका और इसके बाद परशुराम जी ने अपने पितरों का श्राद्ध किया और महेंद्र पर्वत पर कुटिया बनाकर रहने लगे।

 

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