विजया एकादशी तिथि व मुहूर्तः-
विजया एकादशी : शनिवार, मार्च 2, 2019 को
एकादशी तिथि प्रारम्भ - मार्च 01, 2019 को प्रात: 08:39
एकादशी तिथि समाप्त - मार्च 02, 2019 को प्रात: 11:04
पारण (व्रत तोड़ने का) समय - प्रात: 06:51 से प्रात: 09:10
पारण तिथि के दिन द्वादशी समाप्त होने का समय - दोपहर 01:45
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फाल्गुन माह की कृष्ण पक्ष की एकादशी को विजया एकादशी का पर्व मनाया जाता है, मान्यता है कि इस व्रत को करने से व्रती को हर कार्य में सफलता प्राप्त होती है और पूर्वजन्म में किये गये पापों से भी मुक्ति मिल जाती है, चलिये जानें विजया एकादशी की व्रत कथा और पूजन विधि के विषय में-
विजया एकादशी व्रत कथाः-
द्वापर युग में धर्मराज युद्धिष्ठिर को फाल्गुन एकादशी के महत्व के बारे में जानने की जिज्ञासा हुई, वे कृष्ण के पास गये और उनके सामने अपनी इच्छा प्रकट की, श्री कृष्ण ने फाल्गुन एकादशी के महत्व को समझाते हुए एक कथा सुनाई- त्रेता युग में श्री राम ने सीता माता के हरण के पश्चात् रावण से युद्ध करने के लिये लंका की ओर अपनी दिशा ली और रास्ते में एक विशाल समुद्र ने उनका रास्ता रोक लिया, उस समुद्र में कई प्रकार के समुद्री जीव थे जो वानर सेना को हानि पहुँचा सकते थे, श्री राम मनुष्य रूप में थे इसलिये इस दुविधा को वह एक साधारण मनुष्य की तरह ही सुलझाना चाहते थे, वह लक्ष्मण के पास गये और कोई उपाय खोजने को कहा लक्ष्मण ने कहा हे प्रभु आप तो सब जानते हैं फिर भी अगर आप इसका उपाय जानना चाहते हैं तो मुझे भी इसका कोई उपाय नहीं सूझ रहा।
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परन्तु यहाँ से आधे योजन की दूरी पर एक मुनिवर वकदालभ्य रहते हैं वह हमारी इस समस्या का अवश्य ही कुछ उपाय बताएंगे, यह सुनकर भगवान राम उसी समय उनके पास पहुँच गये उन्हें प्रणाम करते हुए उन्हें अपनी समस्या के बारे में विस्तार से बताया, सब सुनने के बाद मुनिवर ने कहा कि फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को अगर आप सभी सेना सहित विजया एकादशी का उपवास रखें तो आप सभी समुद्र पार करने में अवश्य ही सफल रहेंगे, इतना ही नहीं इसके प्रभाव से आप लंका में भी विजय प्राप्त कर लेंगे, मुनिवर वकदालभ्य की बताई गई विधि के अनुसार श्री राम और उनकी वानर सेना ने एकादशी का उपवास रखा और रामसेतु बनाकर समुद्र पार किया व रावण को भी परास्त किया।
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विजया एकादशी व्रत व पूजन विधिः-
मुनिवर वकदालभ्य द्वारा बताई गई विधि इस प्रकार है कि दशमी के दिन एकादशी से एक दिन पहले एक वेदी बनाएं और उसपर सप्तधान रखें इसके बाद तांबे या मिट्टी का कलश बनाकर उसपर स्थापित करें तथा चंदन, फल, धूप, दीप, फूल व तुलसी आदि से भगवान श्री हरि की पूजा अर्चना करें, उपवास के साथ ही पाठ व श्रवण भी करें, रात्रि में भगवान हरि के नाम से भजन कीर्तन करें, द्वादशी के दिन ब्राह्ममण को भोजन कराएं व कलश का दान करें, इसके पश्चात् व्रत का पारण करें, व्रत से पहले की रात्रि में भी सात्विक भोजन ही ग्रहण करें और ब्रह्मचर्य का पालन करें, इस प्रकार से विधिपूर्वक जो भी व्यक्ति उपवास रखता है वह कठिन से कठिन हालात में भी विजय प्राप्त करता है।
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