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शिव को प्रसन्न करें शिव पंचाक्षर स्तोत्र के जाप से! (Shiv Panchakshar Stotra )

शिव पंचाक्षर स्तोत्र :
शिवपुराण में भगवान शिव कहते है– “जिसकी जैसी समझ हो, जिसे जितना समय मिल सके, जिसकी जैसी बुद्धि, शक्ति, सम्पत्ति, उत्साह, योग्यता और प्रेम हो, उसके अनुसार वह जब कभी, जहां कहीं अथवा जिस किसी भी साधन द्वारा मेरी पूजा कर सकता है। उसकी की हुई वह पूजा उसे अवश्य मोक्ष की प्राप्ति करा देगी।”
जगद्गुरु आदि शंकराचार्य ने पंचाक्षर मंत्र के प्रत्येक अक्षर की महिमा का प्रतिपादन करने के लिए श्री शिव पंचाक्षर स्तोत्र बनाया था। इसका संत जन बडे आदर से पाठ करते हैं। आशुतोष महादेव परम दयालु और बहुत जल्दी खुश होने वाले हैं। इनकी उपासना करने से सारे कष्ट दूर होते हैं और भक्त निर्भय हो जाता है। इस स्तोत्र के मन्त्रों में पंचानन (पांच मुख वाले) महादेव की सभी शक्तियां सन्निहित हैं। यह पंचाक्षर स्तोत्र समाज के सभी वर्गो के लोगों के लिए समान रूप से फलदायी है। इसलिए कोई भी स्त्री या पुरुष इस पंचाक्षर मंत्र को नित्य भक्तिपूर्वक जप सकता है।


महाशिवरात्रि पर इस मंत्र का प्रभाव और महत्त्व बढ़ जाता है। इस पर्व पर श्रद्धापूर्वक 108 बार इस स्त्रोत का जाप करें, शिवजी सारी मनोकामनाएं पूरी करेंगे। श्री शिव पंचाक्षर स्तोत्र के पाँचों श्लोकों में क्रमशः न, म, शि, वा और य अर्थात् ‘नम: शिवाय’ है, अत: यह स्तोत्र स्वयं शिवस्वरूप है–

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नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांगरागाय महेश्वराय।
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय तस्मै ‘न’ काराय नम: शिवाय।।
मन्दाकिनी सलिलचन्दनचर्चिताय नन्दीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय।
मन्दारपुष्पबहुपुष्प सुपूजिताय तस्मै ‘म’ काराय नम: शिवाय।।
शिवाय गौरीवदनाब्जवृन्द सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय।
श्रीनीलकण्ठाय वृषध्वजाय तस्मै ‘शि’ काराय नम: शिवाय।।
वशिष्ठकुम्भोद्भव गौतमार्य मुनीन्द्रदेवार्चित शेखराय।
चन्द्रार्क वैश्वानरलोचनाय तस्मै ‘व’ काराय नम: शिवाय।।
यक्षस्वरूपाय जटाधराय पिनाकहस्ताय सनातनाय।
दिव्याय देवाय दिगम्बराय तस्मै ‘य’ काराय नम: शिवाय।।
पंचाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेत् शिव सन्निधौ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते॥


 

अर्थ :– 'जिनके कण्ठ में सांपों का हार है, जिनके तीन नेत्र हैं, भस्म जिनका अंगराग है और दिशाएं ही जिनका वस्त्र है (अर्थात् जो नग्न है), उन शुद्ध अविनाशी महेश्वर ‘न’कारस्वरूप शिव को नमस्कार है। गंगाजल और चंदन से जिनकी अर्चा हुई है, मन्दार-पुष्प तथा अन्य पुष्पों से जिनकी सुन्दर पूजा हुई है, उन नन्दी के अधिपति, प्रमथगणों के स्वामी महेश्वर ‘म’कारस्वरूप शिव को नमस्कार है। जो कल्याणरूप हैं, पार्वतीजी के मुखकमल को प्रसन्न करने के लिए जो सूर्यस्वरूप हैं, जो दक्ष के यज्ञ का नाश करने वाले हैं, जिनकी ध्वजा में बैल का चिह्न है, उन शोभाशाली नीलकण्ठ ‘शि’कारस्वरूप शिव को नमस्कार है। वशिष्ठ, अगस्त्य और गौतम आदि मुनियों ने तथा इन्द्र आदि देवताओं ने जिनके मस्तक की पूजा की है, चन्द्रमा, सूर्य और अग्नि जिनके नेत्र हैं, उन ‘व’कारस्वरूप शिव को नमस्कार है। जिन्होंने यक्षरूप धारण किया है, जो जटाधारी हैं, जिनके हाथ में पिनाक है, जो दिव्य सनातन पुरुष हैं, उन दिगम्बर देव ‘य’कारस्वरूप शिव को नमस्कार है। जो शिव के समीप इस पवित्र पंचाक्षर स्तोत्र का पाठ करता है, वह शिवलोक को प्राप्त होता है और वहां शिवजी के साथ आनन्दित होता है।

 

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