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क्यों अभिमन्यु की रक्षा नहीं कर पाए कृष्ण ? (Why Krishna did not protect Abhimanyu )

महाभारत की कथा तो सभी जानते हैं, किन्तु उसमे कई सारी बातें ऐसी हैं जिनका रहस्य हम समझ नहीं पाते। समझेंगे भी कैसे हम तो साधारण मनुष्य हैं, और ईश्वर की लीलाएं तो स्वयं देवता भी नहीं समझ पाते। 
ऐसे ही एक रहस्य की बात हम करने जा रहे हैं -अर्जुन के वीर पुत्र अभिमन्यु की मृत्यु की।  अभिमन्यु ने बहुत बहादुरी से युद्ध किया था , परन्तु अंत में चक्रव्यूह में फंसा कर कौरवों में निर्ममता से उसकी हत्या कर दी। प्रश्न यह है, कि श्री कृष्ण तो पहले से ही सब कुछ जानते थे, तो उन्होंने अभिमन्यु को क्यों नहीं बचाया?  जबकि अर्जुन को उन्होंने युद्ध में बार बार संरक्षण दिया था।

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धर्म की स्थापना :-
बात तब की है जब पृथ्वी पर अधर्म अपने चरम पर पहुंच गया था और धर्म की स्थापना हेतु देवता योजना बना रहे थे, धर्म की रक्षा के लिए भगवान् विष्णु ने कृष्ण का अवतार लेने का निश्चय किया। तब ब्रह्मा जी ने अन्य देवताओं को ये आदेश दिया की वे भी पृथ्वी पर धर्म की स्थापना हेतु श्री कृष्ण की सहायता करेंगे। और इसके लिए सभी देवताओं को या तो अपने अंश अवतरित करने होंगे या उनके पुत्रों को पृथ्वी में जन्म लेना होगा। सभी देवता गण अपना अंश या अपने पुत्रो को पृथ्वी पर अवतरित करने के लिए सहमत होते है। 
परन्तु जब चंद्र देव को पता चलता है कि उनके पुत्र वर्चा को भी पृथ्वी पर जन्म लेने का आदेश मिला है तो वे व्याकुल हो गए और इस आदेश का विरोध करने लगे। वे अपने पुत्र से दूर नहीं रह सकते थे।  परन्तु सभी देवताओं ने उन्हें समझाया की 'ये परम पिता ब्रह्मा का आदेश है, जिसे उन्हें मान्य करना ही होगा। और धर्म की स्थापना के लिए कार्य करना सभी देवताओं का कर्तव्य है।' 

चंद्र देव की शर्त :-
सबकी बात सुनकर चंद्र देव वर्चा के अवतरण के लिए सहमत हो गए, पर उन्होंने एक शर्त रखी। शर्त यह थी कि उनका पुत्र पृथ्वी पर अधिक समय के लिए नहीं रहेगा और पांडवों के पक्ष से ही युद्ध करेगा। वह सबसे अधिक शूरवीर होगा  और पूरे दिन युद्ध करने के पश्चात् उसे सांयकाल में ही अपने नश्वर शरीर को छोड़कर मेरे पास स्वर्ग आना होगा।  देवताओं ने उन्हें मानाने की दृष्टि से सभी शर्तें स्वीकार कर लीं।
इसलिए अभिमन्यु ने अर्जुन के पुत्र के रूप में जन्म लिया और कृष्ण जी के शिक्षण में परम प्रतापी बना। अभिमन्यु ने माता के गर्भ से ही चक्रव्यूह की तोडना सीख लिया था। किन्तु चक्रव्यूह से बाहर आने का तरीका वो नहीं जान पाया क्योकि जब अर्जुन सुभद्रा को चक्रव्यूह तोडना सीखा रहे थे तो आधे में ही सुभद्रा को नींद आ गयी।

चक्रव्यूह की रचना :-
पितामह भीष्म के घायल होने के बाद से ही पांडवों ने कौरवों की सेना में उथल पुथल मचा दी थी।  इसलिए कौरवों ने पांडवों की सेना का नाश करने की योजना बनाई। योजना के अनुसार उन्होंने अर्जुन और उनके सारथि बने कृष्ण को युद्ध भूमि से दूर कर दिया था। और चक्रव्यूह की रचना की, जो केवल अर्जुन ही तोडना जनता था। 
किन्तु ऐसे समय में अभिमन्यु ने आगे आ कर उनकी सेना का सर्वनाश होने से बचा लिया। वह चक्रव्यूह के भीतर प्रवेश कर गया, किन्तु उसके साथ कोई और योद्धा उसमे प्रवेश नहीं कर पाया। उन्हें चक्रव्यूह के द्वार पर ही जयद्रत ने शिव के वरदान की शक्ति से रोक लिया। अभिमन्यु अकेला ही 6 महारथियों से लड़ा। वह घायल हो कर भी लड़ता रहा, हार नहीं मानी। और जब अभिमन्यु के हाथ से शस्त्र भी टूट कर गिर गए तब भी वह रथ के पहिये से लड़ता रहा। और ऐसे ही सायकाल तक लड़ते लड़ते उसके शरीर से रक्त की हर एक बून्द भूमि पर गिर गयी, और वह वीरगति को प्राप्त हुआ।
और इस प्रकार अपनी बहादुरी के कारण वो युद्ध भूमि का सबसे शूरवीर योद्धा कहलाया, और शर्तानुसार जल्द ही स्वर्ग को प्रस्थान कर गया। यही कारण था की श्री कृष्ण ने सब कुछ जानते हुए भी अभिमन्यु के प्राणो की रक्षा नहीं की और उसकी नियति में कोई बाधा उत्पन्न नहीं की।  

 

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