हम सभी यह बात भलि भांति जानते हैं कि किसी भी देश की पहचान उसके झंडे से होती है, अपने ध्वज का सम्मान ही सर्वोच्च माना जाता है, किसी भी फौजी के लिये उसके देश के ध्वज की महत्वता उसकी जान से बढ़कर होती है, पौराणिक समय में भी ध्वज का बहुत महत्व हुआ करता था, एक शूरवीर का ध्वज ही उसकी पहली पहचान होता था, झंडे को ध्वज व पताका भी कहते हैं, हिन्दू धर्म में भगवा, गेरूआ और केसरिया रंग का झंडा प्रमुख होता है।
ध्वजा पर चिन्ह का महत्वः-
किसी भी ध्वज की पहचान उसके रंग और चिन्ह से होती है, ज़्यादातर ध्वज में ओम चिन्ह का प्रयोग सबसे ज़्यादा किया जाता है, हर अवसर के हर संप्रदाय विशेष के अलग अलग प्रकार के चिन्ह होते हैं, शैव संप्रदाय नंदी ध्वज को प्रमुख माना गया है वहीं वैष्णव संप्रदाय में गरूड़ ध्वज को प्रमुख माना गया है, प्राचीन ग्रंथ में लिखा हुआ है कि ध्वज के ऊपर छाग, मृग, वज्र, बाज, कलश, प्रासाद, नीलोत्पल, शंख, कूर्म, सिंह और सर्प आदि की छवियां अंकित की जानी चाहिये।
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हमारे ग्रंथों में भी युद्ध में प्रयोग किये गये ग्रंथों का वर्णन किया गया है, ऋग्वेद संहिता जैसे अन्य कई ग्रंथों में भी ध्वज को महत्वता दी गई है, हर ध्वज के आकार के अनुसार कई नाम दिये गये थे जैसे कि कृतध्वजः, अक्रः, बृहतकेतु, केतु, सहस्त्रकेतु आदि, महाग्रंथ महाभारत में भी हर एक महारथी और रथी के पास उसका निजी ध्वज होता था और उसके शंख सेना नायक की पहचान थे।
ध्वजा के प्रकारः-
इतिहास की रणभूमि में हर अवसर के अनुकूल आठ प्रकार के ध्वजों का प्रयोग होता था, इन झंडों के नाम थे- जय, विजय, चपल, भीम, दीर्घ, वैजयन्तिक, लोल और विशाल, ये सभी ध्वज आने वाले संकेत पर सूचना दिया करते थे।
जय:- जय ध्वज वज़न में सबसे हल्का और रक्त वर्ण का होता था, यह ध्वज विजय का प्रतीक माना जाता है, इस ध्वज का दंड 5 हाथ लम्बा होता है।
विजय:- विजय ध्वज लम्बाई में 6 हाथ का होता है, यह ध्वज श्वेत वर्ण का होता है, ध्वज तब फहराया जाता है जब पूर्ण विजय प्राप्त हो जाती है।
भीम:- भीम ध्वज अरूण वर्ण का होता था, इसकी लम्बाई 7 हाथ लम्बी होती थी, इस ध्वज को लोमहर्षण युद्ध के अवसर पर फहराया जाता था।
चपल:- चपल ध्वज पीत वर्ण का होता था, इसकी लम्बाई 8 हाथ लम्बी होती थी, विजय व हार के बीच में जब द्वन्द्व चलता था, पुराने समय में सेनापति को युद्ध गति की सूचना इसी ध्वज से दी जाती थी।
वैजयन्तिक:- यह ध्वज विविध रंगों का होता था, इसकी लम्बाई 9 हाथ लम्बी होती थी।
दीर्घ:- दीर्घ ध्वज नीले रंग का होता है, इसकी लम्बाई 10 हाथ की होती है, जिस समय युद्ध का परिणाम शीघ्र ज्ञात नहीं हो पाता था तो ऐसे समय में यही ध्वज प्रयुक्त होता था।
विशाल:- विशाल ध्वज धारीवाल होता है, इसकी लम्बाई 11 हाथ की होती है।
लोल:- लोल झंडा कृष्ण वर्ण का होता है, इसकी लम्बाई 12 हाथ की होती है।
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महाभारत में प्रत्येक योद्धा अपने ध्वज के चिन्ह से पहचाना जाता थाः-
युधिष्ठिर:- नक्षत्रयुक्त चन्द्र वाला स्वर्ण ध्वज।
अर्जुन:- अर्जुन के ध्वज को वानर ध्वज कहते हैं क्योंकि इस पर हनुमान जी का चित्र अंकित था।
भीष्म:- भीष्म के पास विशाल ध्वज पताका था जो ताड़ और 5 तारों से युक्त था।
नकुल:- नकुल के ध्वज पर लाल हिरण का चित्र अंकित था जिसकी पीठ स्वर्ण की थी।
सहदेव:- सहदेव के ध्वज पर हंस का चिन्ह बना हुआ था जो चाँदी से जड़ित हंस था।
अभिमन्यु:- अभिमन्यु के ध्वज पर पीले पत्तों का पेड़ अंकित था।
कृपाचार्य:- कृपाचार्य के ध्वज पर सांड का चित्र अंकित था।
गुरू द्रोणाचार्य:- गुरू द्रोणाचार्य के ध्वज पर सौवर्ण वेदी का चित्र अंकित था और तपस्वी का धनुष व कटोरा भी अंकित था।
दुर्योधन:- दुर्योधन के ध्वज पर एक रत्नों से सजा हुआ हाथी अंकित था जिनमें अनेकों घंटियाँ लगी हुई थी।
श्री कृष्ण:- भगवान कृष्ण के ध्वज पर गरूड़ अंकित था इसी कारण उनके ध्वज को गरूड़ ध्वज कहा जाता है।
कर्ण:- कर्ण का ध्वज हस्तिकाश्यामाहार केतु नामक ध्वज था।
अश्वत्थामा:- अश्वत्थामा के पताका ध्वज में सिंह की पूंछ का चिन्ह अंकित था।
घटोत्कच:- घटोत्कच के ध्वज पर गिद्ध का चिन्ह अंकित था।
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देवताओं की भी विशेष ध्वजा का उल्लेख ग्रंथों में मिलता है-
ब्रह्मा की ध्वजा:- हंस ध्वज
विष्णु की ध्वजा:- गरूढ़ ध्वज
महेश की ध्वजा:- वृषभ ध्वज
दुर्गा की ध्वजा:- सिंह ध्वज
गणेश की ध्वजा:- कुम्भ ध्वजा एंव मूषक ध्वज
कार्तिकेय की ध्वजा:- मयूर ध्वज
वरूणदेव की ध्वजा:- मकर ध्वज
अग्निदेव की ध्वजा:- धूम ध्वज
इंद्रदेव की ध्वजा:- एरावत और वैजयंति ध्वज
यमराज की ध्वजा:- भैंस
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