सामान्य लोगों का मानना है कि आजकल के युवा उच्च शिक्षा प्राप्त करके केवल पैसे कमाना जानते हैं, और आध्यात्म को वे एक ढोंग समझते हैं। किन्तु ऐसी ही बातों को केवल दकियानूसी साबित करते हुए देवी समहिता न केवल आध्यात्म के क्षेत्र में आगे बढ़ रहीं हैं बल्कि एक बड़े जनसमुदाय को भी इसके लिए प्रेरित करतीं हैं।
साध्वी समाहिता जी |
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जन्म |
5 जुलाई, 1990 |
माता | श्री अशोक कुमार त्रिवेदी |
पिता | श्रीमती शकुंतला देवी |
जीवन चरित्र
साध्वी समाहिता जी का जन्म 5 जुलाई 1990 को एक कान्यकुब्ज ब्राह्मण परिवार में हुआ, इनके पिता का नाम श्री अशोक कुमार त्रिवेदी एवं माता जी का नाम श्रीमती शकुंतला देवी है। बचपन से ही ये बहुमुखी प्रतिभा की धनी रही है तथा पढ़ाई में हमेशा से ही सर्वाधिक अंक प्राप्त करती रही हैं। इन्होंने भूगोल शास्त्र में परास्नातक तक शिक्षा प्राप्त की है।
बाल्यकाल से ही इन्हें संगीत सुनने एवं कविताएं लिखने में विशेष रुचि थी, इनके माता पिता इन्हें अनुपम कहकर पुकारते थे। शुरू से ही इनका लक्ष्य कलेक्टर बनने का था, और आईपीएस की परीक्षा की तैयारी कर रही थीं। उसी दौरान इन्हें श्रीधाम वृन्दाबन आने का अवसर प्राप्त हुआ, और तभी से इनके जीवन की दिशा ही बदल गई।
जीवन तत्व और मार्गदर्शन :
ठाकुर श्री बांकेबिहारी जी के दर्शन करने के पश्चात, इनके मन मे कृष्ण भक्ति एवं ठाकुर जी के चरणों के लिए प्रेम उमड़ने लगा। सम्पूर्ण वृन्दावन दर्शन करने के बाद तो इन्होंने श्रीधाम में ही जीवन बिताने का फैसला किया। ठाकुर श्री बांके बिहारी जी एवं श्री राधारानी सरकार की पावन प्रेरणा एवं कृपा से इन्होंने परम पूज्य दीदी माँ साध्वी ऋतंभरा जी से गुरुदीक्षा प्राप्त की। ऐसे सद्गुरु को पाकर धन्यता का बोध किया एवं आश्रम के कड़े अनुशासन में रहकर पूज्य दीदी माँ जी के सानिध्य में ही विभिन्न धर्म शास्त्रों का अध्ययन एवं संगीत की शिक्षा प्राप्त की।
कथा वाचन :
अल्प समय मे ही श्रीमद्भागवत, उपनिषद, कर्मकांड, श्रीमद्भागवत गीता एवं श्रीरामचरित मानस, नारद भक्ति सूत्र आदि का उन्होंने तल्लीनता से अध्ययन किया, और समापन सत्र में प्रथम श्रेणी प्राप्त की। वर्ष 2011 से श्रीमद्भागवत कथा एवं श्री राम कथा का अमृतमय वाचन करना प्रारंभ किया। अब तक आपने लगभग 90 कथाएं की है। जो भी भक्त एक बार साध्वी जी की सरल एवं ओजपूर्ण वाणी को सुनता है वो प्रभावित हुए बिना नही रहता। साध्वी समाहिता जी का उद्देश्य धर्म प्रचार एवं राष्ट्रनिर्माण में युवाओं की भूमिका सुनिश्चित करना हैं। साध्वी जी चाहती है कि वो निरंतर ठाकुर जी की लीलाओं का एवं भजनों का गायन करती रहें, निरंतर तन्मय होकर अपने प्रियतम की पावनी कथाओं का रसपान करती रहती रहें।
संदर्भ :
Amreesh Kumar Aarya (वार्ता) 11:31, 29 दिसम्बर 2017 (UTC)Amreesh Kumar Aarya