श्री रमेशभाई ओझा जो 'भाई' या 'भाईजी' के रूप में लोकप्रिय हैं। वह एक आध्यात्मिक गुरु हैं जो हमेशा लोगों को सर्वशक्तिमान के अस्तित्व पर विश्वास कराते है। उन्होंने अपने सारे जीवन को दुनिया की भलाई के लिए समर्पित कर सत्य के मार्ग का अनुसरण करने के लिए काम किया है। श्री रमेशभाई मानते हैं कि लोगों को प्यार, भलाई और आध्यात्मिकता का मार्ग अपनाना चाहिए। उनके उपदेश मानव जाति के बीच उच्च गुणों के बीज बोने की दिशा में निर्देशित है, जो व्यक्तियों को प्रबुद्ध आत्माओं में बदल देगा।
श्री रमेशभाई ओझा |
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जन्म |
31 अगस्त, 1957 गुजरात |
संक्षिप्त परिचय
श्री रमेशभाई ओझा का जन्म 31 अगस्त 1957 को गुजरात राज्य में सौराष्ट्र जिले के देवका नामक गांव में हुआ था। उनके पिता स्वर्गीय श्री वृजलाल कांजीभाई ओझा और उनकी मां श्रीमती लक्ष्मी बेन ओजा चार भाइयों और दो बहनों के परिवार में अपने दूसरे बेटे के रूप में रमेशभाई के जन्म से बहुत खुश थे। श्री रमेशभाई के पिता और उनकी दादी श्रीमती भागीरथी बेन भागवत के एक दृढ़ अनुयायी थे, जिन्होंने
उन्हें बहुत प्रभावित किया है। उनकी दादी गांव के अशिक्षित बुजुर्गों को शिक्षित करने और पढ़ाने के लिए भी समर्पित थी।
उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा राजूला के एक संस्कृत स्कूल तत्वज्योति में पूरी की। आखिर में वह मुंबई चले गए, जहां उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा पूरी की और वाणिज्य में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। वह अपने चाचा, जीवनराज ओजा से प्रेरित थे, जो भागवत पुराण के कथाकार थे। उनके चाचा ने कथा में उनकी रुचि देखी और उन्हें धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन और अभ्यास करने की प्रेरणा दी।
उन्होंने गंगोत्री में 13 वर्ष की उम्र में भागवत पुराण पर अपनी पहली कथा आयोजित की। 18 साल की उम्र में, उन्होंने मध्य मुंबई में भागवत पुराण का वाचन किया। तब से उन्होंने दुनिया भर में कई पठन किए हैं।
जीवन उद्देश्य
भाईजी के उपदेश बताते हैं की अज्ञानता को केवल शिक्षा द्वारा मिटाया जा सकता है, इसलिए उन्होंने एक निश्चित संख्या में विद्यार्थियों को शिक्षित करके निरक्षरता को दूर करने की दिशा में 'सदीपनी विद्यानिकेतन' के द्वारा एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। और इसके द्वारा युवाओं के दिल में धर्म और अच्छे संस्कारों की उपज की जा रही है।
श्री रमेशभाई ओझा ने 1980 में गुजरात के पोरबंदर में प्रतिष्ठित संदिपनी विद्यानिकेतन स्कूल की स्थापना की। संदिपनी विद्यानिकेतन में छात्रों को वेदों, उपनिषदों तथा शास्त्रों का ज्ञान दिया जाता है।
इसके परिसर में 500 छात्रों के लिए आवास और संस्कृत शिल्प में व्यापक शिक्षा प्रावधानों के साथ-साथ पूर्ण धर्मनिरपेक्ष पाठ्यक्रम भी बनाया गया है। ऋषिकुल के अध्ययन के आठ साल के पाठ्यक्रम के साथ स्नातक "शास्त्री" होता है।
Amreesh Kumar Aarya (वार्ता) 09:31, 14 दिसम्बर 2017 (UTC)Amreesh Kumar Aary