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Lord Ganesha

Join Date : 26-Oct-2017

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परिचय

गणेश

 
गणेश
Attired in an orange dhoti, an elephant-headed man sits on a large lotus. His body is red in colour and he wears various golden necklaces and bracelets and a snake around his neck. On the three points of his crown, budding lotuses have been fixed. He holds in his two right hands the rosary (lower hand) and a cup filled with three modakas (round yellow sweets), a fourth modaka held by the curving trunk is just about to be tasted. In his two left hands, he holds a lotus above and an axe below, with its handle leaning against his shoulder.
बशोली लघु चित्रकारी, 1730 ईसवी, राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली, भारत.
संबंध हिन्दु देवता
मंत्र ॐ गं गणपतये नमः
अस्त्र परशु,
पाश,
अंकुश
जीवनसाथी रिद्धि,
सिद्धि
एक माँ की संताने कार्तिकेय
सवारी श्री डिंकजी (मूषक)

गणेश शिवजी और पार्वती के पुत्र हैं। उनका वाहन डिंक नामक मूषक है। गणों के स्वामी होने के कारण उनका एक नाम गणपति भी है। ज्योतिष में इनको केतु का देवता माना जाता है और जो भी संसार के साधन हैं, उनके स्वामी श्री गणेशजी हैं। हाथी जैसा सिर होने के कारण उन्हें गजानन भी कहते हैं। गणेश जी का नाम हिन्दू शास्त्रो के अनुसार किसी भी कार्य के लिये पहले पूज्य है। इसलिए इन्हें आदिपूज्य भी कहते है। गणेश कि उपासना करने वाला सम्प्रदाय गाणपतेय कहलाते है।

शारीरिक संरचना

 
मंदसौर से प्राप्त प्रतिमा
 
चतुर्भुज गणेश

गणपति आदिदेव हैं जिन्होंने हर युग में अलग अवतार लिया। उनकी शारीरिक संरचना में भी विशिष्ट व गहरा अर्थ निहित है। शिवमानस पूजा में श्री गणेश को प्रणव (ॐ) कहा गया है। इस एकाक्षर ब्रह्म में ऊपर वाला भाग गणेश का मस्तक, नीचे का भाग उदर, चंद्रबिंदु लड्डू और मात्रा सूँड है।

चारों दिशाओं में सर्वव्यापकता की प्रतीक उनकी चार भुजाएँ हैं। वे लंबोदर हैं क्योंकि समस्त चराचर सृष्टि उनके उदर में विचरती है। बड़े कान अधिक ग्राह्यशक्ति व छोटी-पैनी आँखें सूक्ष्म-तीक्ष्ण दृष्टि की सूचक हैं। उनकी लंबी नाक (सूंड) महाबुद्धित्व का प्रतीक है।

कथा

प्राचीन समय में सुमेरू पर्वत पर सौभरि ऋषि का अत्यंत मनोरम आश्रम था। उनकी अत्यंत रूपवती और पतिव्रता पत्नी का नाम मनोमयी था। एक दिन ऋषि लकड़ी लेने के लिए वन में गए और मनोमयी गृह-कार्य में लग गई। उसी समय एक दुष्ट कौंच नामक गंधर्व वहाँ आया और उसने अनुपम लावण्यवती मनोमयी को देखा तो व्याकुल हो गया।

कौंच ने ऋषि-पत्नी का हाथ पकड़ लिया। रोती और काँपती हुई ऋषि पत्नी उससे दया की भीख माँगने लगी। उसी समय सौभरि ऋषि आ गए। उन्होंने गंधर्व को श्राप देते हुए कहा 'तूने चोर की तरह मेरी सहधर्मिणी का हाथ पकड़ा है, इस कारण तू मूषक होकर धरती के नीचे और चोरी करके अपना पेट भरेगा।

काँपते हुए गंधर्व ने मुनि से प्रार्थना की-'दयालु मुनि, अविवेक के कारण मैंने आपकी पत्नी के हाथ का स्पर्श किया था। मुझे क्षमा कर दें। ऋषि ने कहा मेरा श्राप व्यर्थ नहीं होगा, तथापि द्वापर में महर्षि पराशर के यहाँ गणपति देव गजमुख पुत्र रूप में प्रकट होंगे (हर युग में गणेशजी ने अलग-अलग अवतार लिए) तब तू उनका डिंक नामक वाहन बन जाएगा, जिससे देवगण भी तुम्हारा सम्मान करने लगेंगे। सारे विश्व तब तुझे श्री डिंकजी कहकर वंदन करेंगे।

गणेश को जन्म न देते हुए माता पार्वती ने उनके शरीर की रचना की। उस समय उनका मुख सामान्य था। माता पार्वती के स्नानागार में गणेश की रचना के बाद माता ने उनको घर की पहरेदारी करने का आदेश दिया। माता ने कहा कि जब तक वह स्नान कर रही हैं तब तक के लिये गणेश किसी को भी घर में प्रवेश न करने दे। तभी द्वार पर भगवान शंकर आए और बोले "पुत्र यह मेरा घर है मुझे प्रवेश करने दो।" गणेश के रोकने पर प्रभु ने गणेश का सर धड़ से अलग कर दिया। गणेश को भूमि में निर्जीव पड़ा देख माता पार्वती व्याकुल हो उठीं। तब शिव को उनकी त्रुटि का बोध हुआ और उन्होंने गणेश के धड़ पर गज का सर लगा दिया। उनको प्रथम पूज्य का वरदान मिला इसीलिए सर्वप्रथम गणेश की पूजा होती है।

बारह नाम

गणेशजी के अनेक नाम हैं लेकिन ये 12 नाम प्रमुख हैं- सुमुख, एकदंत, कपिल, गजकर्णक, लंबोदर, विकट, विघ्न-नाश,विनायक, धूम्रकेतु, गणाध्यक्ष, भालचंद्र, गजानन। उप्रोक्त द्वादश नाम नारद पुरान में पहली बार गणेश के द्वादश नामवलि में आया है। विद्यारम्भ तथा विवाह के पूजन के प्रथम में इन नामो से गणपति की आराधना का विधान है।

  • पिता- भगवान शंकर
  • माता- भगवती पार्वती
  • भाई- श्री कार्तिकेय (बड़े भाई)
  • बहन- अशोक सुन्दरी
  • पत्नी- दो 1.रिद्धि 2. सिद्धि (दक्षिण भारतीय संस्कृति में गणेशजी ब्रह्मचारी रूप में दर्शाये गये हैं)
  • पुत्र- दो 1. शुभ 2. लाभ
  • प्रिय भोग (मिष्ठान्न)- मोदक, लड्डू
  • प्रिय पुष्प- लाल रंग के
  • प्रिय वस्तु- दुर्वा (दूब), शमी-पत्र
  • अधिपति- जल तत्व के
  • प्रमुख अस्त्र- पाश, अंकुश
  • वाहन - मूषक

ज्योतिष के अनुसार

ज्योतिशास्त्र के अनुसार गणेशजी को केतु के रूप में जाना जाता है, केतु एक छाया ग्रह है, जो राहु नामक छाया ग्रह से हमेशा विरोध में रहता है, बिना विरोध के ज्ञान नहीं आता है और बिना ज्ञान के मुक्ति नहीं है, गणेशजी को मानने वालों का मुख्य प्रयोजन उनको सर्वत्र देखना है, गणेश अगर साधन है तो संसार के प्रत्येक कण में वह विद्यमान है। उदाहरण के लिये तो जो साधन है वही गणेश है, जीवन को चलाने के लिये अनाज की आवश्यकता होती है, जीवन को चलाने का साधन अनाज है, तो अनाज गणेश है, अनाज को पैदा करने के लिये किसान की आवश्यकता होती है, तो किसान गणेश है, किसान को अनाज बोने और निकालने के लिये बैलों की आवयश्कता होती है तो बैल भी गणेश है, अनाज बोने के लिये खेत की आवयश्कता होती है, तो खेत गणेश है, अनाज को रखने के लिये भण्डारण स्थान की आवयश्कता होती है तो भण्डारण का स्थान भी गणेश है, अनाज के घर में आने के बाद उसे पीस कर चक्की की आवयश्कता होती है तो चक्की भी गणेश है, चक्की से निकालकर रोटी बनाने के लिये तवे, चीमटे और रोटी बनाने वाले की आवयश्कता होती है, तो यह सभी गणेश है, खाने के लिये हाथों की आवयश्कता होती है, तो हाथ भी गणेश है, मुँह में खाने के लिये दाँतों की आवयश्कता होती है, तो दाँत भी गणेश है, कहने के लिये जो भी साधन जीवन में प्रयोग किये जाते वे सभी गणेश है, अकेले शंकर पार्वती के पुत्र और देवता ही नही।

 

गणेश भजन हिंदी में
  • देव श्री गणेशा
गणेश व्रत कथा
  • गणेश चतुर्थी व्रत कथा

गणेश मंत्र 

  •  लक्ष्मीगणेश मंत्र
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