श्री संजीव कृष्ण ठाकुर का जन्म 23 दिसंबर, 1984 को श्री सत्य भान शर्मा और श्रीमती राधा देवी के घर ब्रिज मंडल में पवित्र नागस्थली पायगांव (मथुरा) में हुआ था। उनकी मां जिनका नाम भी राधा देवी था, राधारानी की भक्त थीं। उनके दादाजी और दादी वैष्णव (कृष्ण भक्त) थे जो कि अत्यंत शुद्ध और अनुशासित जीवन जीने के लिए अग्रणी थे। उनकी परदादी, जो सदा कृष्ण कीर्तन में लगी रहतीं थी, ने संजीव जी पर बचपन से ही गहरा प्रभाव डाला। उनके पिता, दादा और मां शिक्षक थे।
सद्गुरु की कृपा से, ठाकुरजी ने 12 वर्ष की निविदा उम्र में ब्रज मंडल के फालेन गांव में अपनी पहली भागवत कथा प्रस्तुत की। श्री राजवंशी, जो की वृंदावन के एक उल्लेखनीय विद्वान हैं, ने उनकी असाधारण बोलने की क्षमता, ज्ञान व शैली से प्रभावित होकर उनको कृष्ण का नाम दिया। बाद में शुकर्तले के पदम विभूषण स्वामी श्री कल्याण देव ने उन्हें शुकदेव का खिताब दिया।
जब भी समय मिलता है संजीव कृष्ण ठाकुरजी आदिवासी लड़कों और लड़कियों को जंगलों और अन्य दूरस्त क्षेत्रों में मिलते हैं और उन्हें गुरु, गंगा, गीता और गौ के महत्व और प्रासंगिकता को बताते हैं। ताकि वे अपने अन्य साथी पुरुषों और महिलाओं को प्रेरित कर सकें और धर्म के मार्ग का पालन करें। ठाकुरजी जेल भी जाते हैं जहाँ वे कैदियों को अपराध मुक्त जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं। प्राकृतिक आपदाओं जैसे कि भूकंप, बाढ़ इत्यादि के दौरान भी वे प्रभावित क्षेत्रों का दौरा कर हर संभव सहायता प्रदान करते हैं।