पूज्य श्री महाराज जी ने प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से अपने जीवन में ग्यारह संतों का संग किया व इन सब संतों को आप आज भी अपने गुरु रूप में स्वीकार करते हैं। पू. स्वामी श्रीकृष्णानंद जी महाराज ;वृन्दावन, पू. पंडित श्रीगयाप्रसाद जी ;गोवर्धन, पू. श्री इंजीनियर सरकार जी ;दरभंगा, बिहार, पू. ठाकुर श्रीघनश्यामदास जी ;वृन्दावन, पू. आचार्य चरण श्री श्रीजी महाराज ;सलेमाबाद, पुष्कर व पू. श्री जगन्नाथ बाबा ;वृन्दावन का प्रत्यक्ष सत्संग व कृपा प्राप्त की तथा भाई श्री हनुमानप्रसाद पोद्दार जी ;गोरखपुर, पू. श्री राधा बाबा ;गोरखपुर, पू. श्रीजयदयाल गोयन्दका जी ;गोरखपुर, पू. श्रीबालकृष्णदास जी महाराज ;वृन्दावन का अप्रत्यक्ष सत्संग व कृपा प्राप्त की।
तीन वर्ष वृन्दावन, फिर बारह वर्ष तक श्रीधाम बरसाना में निवास किया। बरसाना मान मन्दिर में गुफा कक्ष में तीन वर्ष तक साध्ना रत रहे। यहीं पर एक दिन भगवान् शिव ने स्वप्न में दर्शन देकर भगवान् श्रीकृष्ण के ऐश्वर्य रूप ;श्री विष्णु की शरणागति कराई व कुछ भविष्य की बातें भी बताई। जो बाद में पूज्य श्री महाराज जी के जीवन में घटित हुई।
अनन्त श्री विभूषित प्रातः स्मरणीय अर्चनीय वन्दनीय निम्बार्कपीठाधीश्वर पू. आचार्य चरण श्री ‘श्रीजी महाराज’ ;श्रीराधसर्वेश्वर शरणदेवाचार्य जी महाराज से दीक्षित होकर निकुंज वृन्दावन रसोपासना में आपने प्रवेश किया व पूज्य श्री इंजीनियर सरकार जी की आज्ञा से हरि नाम जप व हरि भक्ति के प्रचार के लिये श्री भक्तमाल गाथा व श्रीमद्भागवत कथा करने लगे।