गुप्त नवरात्री व्रत कथा
एक बार एक गाँव में ऋषि श्रृंगी अपने शिष्यों के साथ पधारे और कुछ समय व्यतीत करने के उद्देश्य से वही एक कुटिया बना कर रहने लगे। सभी गाँव वाले बहुत श्रद्धा से उनकी सेवा किया करते थे। उनमे एक स्त्री भी थी जो प्रतिदिन ऋषि तथा उनके शिष्यों के लिए फल लेकर आती थी। एक दिन ऋषि ने उससे कहा की - पुत्री तुम प्रतिदिन यहां आती हो किन्तु तुम्हारे चेहरे पर कभी संतोष नहीं दिखाई देता। क्या बात है, यदि कोई चिंता हो तो मुझ से कहो मैं उसे दूर करने की चेष्टा करूँगा। ऋषि की बातें सुनकर वह स्त्री रोने लगी, और बोली की हे प्रभु! मेरे पति बिलकुल भी धार्मिक नहीं हैं। सदैव गलत कार्यों से और अधर्म से जुड़े रहते हैं। यदि मैं घर पर भगवान के लिए कोई पूजा या अनुष्ठान करू तो उसमे भी बाधा करते हैं। मैं क्या करू, कैसे अपने पति को धर्म के मार्ग पर ले आऊं? ऋषि श्रृंगी ने कहा, पुत्री इसके लिए मैं तुम्हे एक उपाय बताता हूँ, यदि तुमने वो उपाय नियम पूर्वक कर लिया तो तुम्हारे पति को इसका अच्छा लाभ मिलेगा और तुम्हारी चिंता दूर होगी। स्त्री ने उत्सुकतावश पुछा क्या उपाय है गुरुवर? ऋषि ने बताया की बसंत और अश्विन मास की नवरात्री के विषय में तुमने अवश्य सुना होगा किन्तु आषाढ़ तथा माघ मास में आने वाली नवरात्री, जिसे गुप्त नवरात्री कहते हैं, के विषय में मैं तुम्हे बताता हूँ। हर वर्ष में दो बार आने वाली गुप्त नवरात्री का अपना अलग महत्व है। इन नवरात्रियों में विशेष पूजा से माता की विशिष्ठ कृपा प्राप्त होती है। प्रकट नवरात्रों में नौ देवियों की पूजा होती है किन्तु गुप्त नवरात्री में दस महाविद्याओं की पूजा होती है। जो भी व्यक्ति इन नवरात्रियों को करता है उससे माता प्रसन्न होती हैं तथा उसकी हर मनोकामना माता पूरी करती है। स्त्री ने आषाढ़ मास में गुप्त नवरात्री के व्रत रखे और पूर्ण निष्ठा से विधिपूर्वक व्रत पूर्ण किये और उसका जीवन भी सामान्य होने लगा। उसका पति गलत कार्यों को छोड़ अच्छे कार्यों में लग गया तथा उसका ईश्वर पर भी विश्वास होने लगा। और इस प्रकार गुप्त नवरात्री के व्रत से उस स्त्री के घर पर खुशियों का अम्बार लग गया। अतः जो भी इस व्रत को निष्ठापूर्वक करेगा उसके जीवन में भी खुशियों का पदार्पण होगा।