श्रावण सोमवार की व्रत कथा
एक नगर की बात है जिसमे एक धनि व्यापारी अपनी पत्नी के साथ रहता था। भगवान की कृपा से उसके पास जीवन की सभी सुख सुविधाएँ और बहुत सारा धन था, किन्तु फिर भी वह सदैव दुखी रहता था। उसके दुःख का कारण उसका निःसंतान होना था। वह अपनी पत्नी के साथ सभी वैद्यों, तीर्थों और ओझाओं के पास जा चुका था किन्तु फिर भी उसकी कोई सनातन नहीं हुई। उसे हमेशा चिंता सताती रहती थी कि कौन उसके मरने पर उसे पिंड दान देगा, किस प्रकार वह मुक्ति प्राप्त कर सकेगा और इतना सारा व्यापर कौन संभालेगा।
वह व्यापारी शिव का अनन्य भक्त था, एक दिन वह अपना दुखड़ा शिव मंदिर में बैठ के शिवलिंग को सुना रहा था कि उसी समय वहां से शिव और पार्वती गुज़रे। पार्वती जी ने उसका रोना सुना तो वे दुखी हो गयीं और महादेव से कहने लगी की यह आपका भक्त है फिर भी दुखी है। इस प्रकार तो इसका भरोसा आप से उठ जायगा, कृपा कर इसे इसका इच्छित फल दे दीजिये। किन्तु शिव ने कहा, की यह व्यापारी अपने पिछले जन्म के कर्म का दंड भोग रहा है इसलिए इसके भाग्य में पुत्र धन नहीं है। किन्तु पार्वती हठ करने लगीं और प्रभु हार कर उस व्यापारी के सामने प्रकट हुए और उसे एक पुत्र का वरदान दिया। किन्तु साथ ही यह भी कहा कि इस पुत्र की आयु केवल सोलह वर्ष ही रहेगी, उसके बाद इसकी मृत्यु हो जायगी।
कुछ समय पश्चात् सेठ के घर में एक सुन्दर बालक का जन्म हुआ, सभी अत्यंत प्रसन्न थे किन्तु सेठ उसके भविष्य के लिए चिंतित था। एक दिन एक ब्राह्मण उसके द्वार पर भिक्षा के लिए आये, तो सेठ ने उन्हें भिक्षा दी। ब्राह्मण अत्यंत तेजस्वी और ज्ञानी था। उसने सेठ का चेहरा देख कर अनुमान लगा लिया की यह दुखी है। उन्होंने दुःख का कारन पूछा तो उसने शिव के दिए हुए आशीर्वाद और पुत्र की छोटी आयु के विषय में बता दिया।
ब्राह्मण ने कहा यदि तुम और तुम्हारी पत्नी श्रावण मास में आने वाले सोमवार का व्रत विधिपूर्वक करोगे तो तुम्हारे सभी कष्ट दूर हो जायँगे। यह मास शिव को अत्यंत प्रिय है इसलिए इसमें किये गए व्रत से वे प्रसन्न होते हैं। व्यापारी अपनी पत्नी सहित प्रत्येक वर्ष यह व्रत करने लगा। धीरे धीरे समय बीतता गया और पुत्र अपनी बारहवीं आयु में पहुंचने वाला था। अब सेठ फिर से चिंतित होने लगा। उसने अपने पुत्र को काशी भेज दिया और उसे शिक्षा ग्रहण करने को कहा। उसके साथ में उसके मामा को भी भेजा गया। वे दोनों काशी जाते हुए जगह जगह ब्राह्मणों की सेवा करते हुए जा रहे थे। एक दिन एक नगर में वे विश्राम के लिए रुके, उस नगर में राजकुमारी का ब्याह होने वाला था। बारात आ पहुंची, किन्तु दूल्हे का पिता दूल्हे के काने होने के कारन चिंतित था की कहीं राजा को पता चला तो वह विवाह नहीं होने देगा। तभी उसकी नज़र व्यापारी के सुन्दर पुत्र पर पड़ी, उसने उसके मामा से कहा की वह इस बालक को दूल्हे के स्थान पर बिठा दें उसके बदले वे उन्हें बहुत सारा धन देंगे। उनकी बात मान कर वह दूल्हे के स्थान पर बैठ गया और इस प्रकार उसका विवाह राजकुमारी से हो गया। किन्तु जाने से पूर्व उसने सारी बात राजकुमारी को बता दी और वह से चला गया। राजकुमारी ने बारात के साथ जाने से मना कर दिया और अपने पति के लौटने की प्रतीक्षा करने का निर्यण लिया।
वह राजकुमारी भी अच्छे पति तथा उसकी दीर्घायु के लिए सावन सोमवार के व्रत किया करती थी तथा सावन सोमवार के व्रत के प्रभाव से उस व्यापारी के पुत्र की आयु बढ़ गयी और वह शिक्षा पूर्ण करके वापस आने की तैयारी करने लगा। वापस आते हुए वह उसी नगर से आया जहाँ उसका राजकुमारी से विवाह हुआ था। उसके आने की सुचना मिलने पर राजा ने अपनी पुत्री को उसके साथ खूब धन और सामान के साथ विदा किया। इस प्रकार वह अपनी पत्नी के साथ अपने माता पिता के पास पंहुचा।
अपने पुत्र को स्वस्थ देख के उसके पिता बहुत प्रसन्न हुए और आगे भी भगवान की कृपा के लिए सम्पूर्ण परिवार सावन सोमवार के व्रत करने लगा। अतः जो भी सावन के पावन माह में शिव की आराधना करता है तथा सोमवार के व्रत रखता है शिव उस से सदैव प्रसन्न रहते हैं।