कथा उस समय की है, जब प्राचीनकाल में पृथ्वी पर राजा पृथु राज्य करते थे। पृथु के राज्य में जयदेव नामक एक ब्राह्यण रहता था। ब्राह्यण के चार पुत्र था। बड़ी पुत्रवधू गणेश चैथ का व्रत करना चाहती थी। उसने इसके लिए अपनी सास से आज्ञा माँगी, तो सास ने इनकार कर दिया। जब जब भी बहू अपनी इच्छा अपनी सास के आगे निवेदन किया, सास ने अस्वीकार कर दिया। बहू परेशान रहने लगी। मन-ही मन अपनी परेशानी गणेशजी को सुनाने लगी।
बड़ी बहू का एक विवाह योग्य लड़का था। गणेशजी ने अप्रसन्न होकर उसे चुरा लिया। घर में उदासी छा गयी। बड़ी बहू ने सास से प्रार्थना की- मांजी! यदि आप आज्ञा दे दें, तो मै गणेश चैथ का व्रत कर लूं। हो सकता है, वे प्रसन्न होकर हम पर कृपा कर दें और मेरा बेटा मिल जायें।
बुजुर्गो का पोते पोती पर स्नेह तो रहता ही है, अतः उसने आज्ञा दे दी। बहू ने गणेशजी का व्रत किया। इससे प्रसन्न होकर गणेशजी ने दुबले-पतले ब्राह्यण का रूप बनाया और जयदेव के घर आ गये। सास और बड़ी बहू ने बड़ी श्रद्धा और प्रेम के साथ उन्हें भोजन कराया।
गणेशजी ने तो उन पर कृपा करने के लिए ही ब्राह्यण का वेश बनाया था, उनके आशीर्वाद से बड़ी बहू का पुत्र घर लौट आया। भगवान ऐसी कृपा सब पर करना।