कामिका एकादशी
यह सावन के कृष्णपक्ष की एकादशी होती है। इसे पवित्रा के नाम से भी पुकारा जाता है। प्रातः स्नादि से निवृत्त हो भगवान विष्णु की प्रतिमा को पंचामृत में स्नान कराकर भोग लगाना चाहिए। आचमन के पश्चात् धूप, दीप चंदन आदि सुगन्धित चीजों से आरती उतारनी चाहिए।
कामिका एकादशी व्रत की कथा
प्राचीनकाल में किसी गाँव में एक ठाकुर रहते थे। क्रोधी ठाकुर की एक ब्राह्यण से भिड़न्त हो गयी। परिणामस्वरूप, ब्राह्यण मारा गया। इस पर उन्होंने उसकी तेरहवीं करनी चाही, परन्तु सब ब्राह्यणों ने भोजन करने से इनकार कर दिया। तब उन्होंने सभी ब्राह्याणों से निवेदन किया कि हे भगवान! मेरा पाप कैसे दूर हो सकता है? इस प्रार्थना पर उन सब ने उसक एकादशी व्रत करने की सलाह दी। ठाकुर ने वैसा ही किया। रात्रि में भगवान की मूर्ति के पास जब शयन कर रहा था, तभी एक सपना आया।
स्वप्न में भगवान ने कहा-हे ठाकुर! तेरा पाप सब दूर हो गया। अब तू ब्राह्यण की तेरहवीं कर सकता है। तेरे धर सूतक नष्ट हो गया। ठाकुर तेरहवीं करके ब्रह्यहत्या के पाप से मुक्त हो विष्णुलोक गया।