बहुत समय पहले की बात है। महिष्मती नाम की सुन्दर नगरी थी। वहाँ एक धार्मिक वृत्ति का राजा राज्य करता था। राजा का नाम था- महाजित। महाजित का घर और सब भांति तो सम्पन्न था, पर उसके कोई पुत्र नही था, अतः वह उदास-सा ही रहता था। पुत्र-प्राप्ति के लिए उसने अनेक धर्मिक उपाय किये। इतने कि यह सब करते-करते उसकी पूरी उम्र निकल गयी। वह वृद्ध हो गया, तब भी उसके यहाँ पुत्र उत्पन्न नहीं हुआ।
एक दिन अपनी व्यथा-कथा उसने लोमश ऋषि को सुनायी। उसको दुखी देखकर ऋषि ने उसे कहा- राजन्! यदि तुम अपनी पत्नी के साथ गणेश चैथ का व्रत करो, तो निश्चित रूप से तुम्हारी इच्छा पूरी होगी और तुम्हारे पुत्र उत्पन्न होगा।
राजा ने पत्नी के साथ गणेश चैथ का व्रत किया। गणेशजी की कृपा से उसकी पत्नी गर्भवती हो गयी। दसवें महीने में उसके गर्भ से एक सुंदर पुत्र का जन्म हुआ। गणेशजी ने उसकी मनोभिलाषा पूरी कर दी।