एक बार महर्षि वेदव्यास पांडवों से एकादशी के पुण्य फलों की चर्चा कर रहे थे। और इस व्रत की महत्ता पांडवों को समझा रहे थे। सभी पांडव माह में दो बार पूर्ण निष्ठां से एकादशी व्रत करने का निश्चय कर चुके थे। किन्तु भीमसेन चिंतित हो उठे, उनके मन की चिंता समझते हुए वेदव्यास ने भीम से उनके परेशान होने का कारन पूछा। भीम ने उन्हें बताया कि महर्षि आप कहते हैं एकादशी का व्रत स्वर्ग प्राप्ति के लिए आवश्यक है, किन्तु मैं माह में दो बार तो क्या एक समय के लिए भी भूखा नहीं रह सकता। यदि मैं भोजन न करू तो मेरे पेट की वृक अग्नि शांत नहीं होती। तो क्या मैं एकादशी के पुण्य फलों से वंचित रह जाऊंगा। ऋषि भी जानते थे कि पांडव पुत्र भीम भूख सहन नहीं कर सकते। इसलिए उन्होंने भीम को उपाय बताया कि यदि तुम वर्ष भर की सभी एकादशी नहीं रख सकते तो कोई बात नहीं तुम ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की केवल एक एकादशी रखो, यह निर्जला एकादशी कहलाती है। इस एक एकादशी के व्रत से तुम्हे समस्त एकादशी व्रतों का पुण्य मिलेगा। भीम ने उत्सुक होकर इस व्रत के विषय में पूछा। महर्षि ने बताया कि यह व्रत सभी एकादशियों में सबसे कठिन है। इस दिन भोजन के साथ साथ पानी पीना भी वर्जित है। केवल स्नान और आचमन में ही पानी का उपयोग कर सकते हैं। इस दिन व्रती को यथा संभव दान करना चाहिए, इस दिन किया गया दान वर्ष भर समृद्धि लाता है। जो भी निर्जला एकादशी का व्रत श्रद्धा पूर्वक पूर्ण नियम से करता है, उसे अंत में बैकुंठ लोक की प्राप्ति होती है। इस व्रत का माहत्म्य सुन कर भीम ने इस व्रत का नियमपूर्वक पालन किया था, इसलिए इस व्रत को पांडव एकादशी अथवा भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है। बोलो सत्यनारायण भगवान की जय!