॥ दोहा ॥
बन्दौ चरण सरोज निज जनक लली सुख धाम, राम प्रिय किरपा करें सुमिरौं आठों धाम ॥ कीरति गाथा जो पढ़ें सुधरैं सगरे काम, मन मन्दिर बासा करें दुःख भंजन सिया राम ॥
॥ चौपाई ॥
१) राम प्रिया रघुपति रघुराई बैदेही की कीरत गाई ॥ २) चरण कमल बन्दों सिर नाई, सिय सुरसरि सब पाप नसाई ॥ ३) जनक दुलारी राघव प्यारी, भरत लखन शत्रुहन वारी ॥ ४) दिव्या धरा सों उपजी सीता, मिथिलेश्वर भयो नेह अतीता ॥ ५) सिया रूप भायो मनवा अति, रच्यो स्वयंवर जनक महीपति ॥ ६) भारी शिव धनु खींचै जोई, सिय जयमाल साजिहैं सोई ॥ ७) भूपति नरपति रावण संगा, नाहिं करि सके शिव धनु भंगा ॥ ८) जनक निराश भए लखि कारन , जनम्यो नाहिं अवनिमोहि तारन ॥ ९) यह सुन विश्वामित्र मुस्काए, राम लखन मुनि सीस नवाए ॥ १०) आज्ञा पाई उठे रघुराई, इष्ट देव गुरु हियहिं मनाई ॥
११) जनक सुता गौरी सिर नावा, राम रूप उनके हिय भावा ॥ १२) मारत पलक राम कर धनु लै, खंड खंड करि पटकिन भू पै ॥ १३) जय जयकार हुई अति भारी, आनन्दित भए सबैं नर नारी ॥ १४) सिय चली जयमाल सम्हाले, मुदित होय ग्रीवा में डाले ॥ १५) मंगल बाज बजे चहुँ ओरा, परे राम संग सिया के फेरा ॥ १६) लौटी बारात अवधपुर आई, तीनों मातु करैं नोराई ॥ १७) कैकेई कनक भवन सिय दीन्हा, मातु सुमित्रा गोदहि लीन्हा ॥ १८) कौशल्या सूत भेंट दियो सिय, हरख अपार हुए सीता हिय ॥ १९) सब विधि बांटी बधाई, राजतिलक कई युक्ति सुनाई ॥ २०) मंद मती मंथरा अडाइन, राम न भरत राजपद पाइन ॥
२१) कैकेई कोप भवन मा गइली, वचन पति सों अपनेई गहिली ॥ २२) चौदह बरस कोप बनवासा, भरत राजपद देहि दिलासा ॥ २३) आज्ञा मानि चले रघुराई, संग जानकी लक्षमन भाई ॥ २४) सिय श्री राम पथ पथ भटकैं , मृग मारीचि देखि मन अटकै ॥ २५) राम गए माया मृग मारन, रावण साधु बन्यो सिय कारन ॥ २६) भिक्षा कै मिस लै सिय भाग्यो, लंका जाई डरावन लाग्यो ॥ २७) राम वियोग सों सिय अकुलानी, रावण सों कही कर्कश बानी ॥ २८) हनुमान प्रभु लाए अंगूठी, सिय चूड़ामणि दिहिन अनूठी ॥ २९) अष्ठसिद्धि नवनिधि वर पावा, महावीर सिय शीश नवावा ॥ ३०) सेतु बाँधी प्रभु लंका जीती, भक्त विभीषण सों करि प्रीती ॥
३१) चढ़ि विमान सिय रघुपति आए, भरत भ्रात प्रभु चरण सुहाए ॥ ३२) अवध नरेश पाई राघव से, सिय महारानी देखि हिय हुलसे ॥ ३३) रजक बोल सुनी सिय बन भेजी, लखनलाल प्रभु बात सहेजी ॥ ३४) बाल्मीक मुनि आश्रय दीन्यो, लवकुश जन्म वहाँ पै लीन्हो ॥ ३५) विविध भाँती गुण शिक्षा दीन्हीं, दोनुह रामचरित रट लीन्ही ॥ ३६) लरिकल कै सुनि सुमधुर बानी,रामसिया सुत दुई पहिचानी ॥ ३७) भूलमानि सिय वापस लाए, राम जानकी सबहि सुहाए ॥ ३८) सती प्रमाणिकता केहि कारन, बसुंधरा सिय के हिय धारन ॥ ३९) अवनि सुता अवनी मां सोई, राम जानकी यही विधि खोई ॥ ४०) पतिव्रता मर्यादित माता, सीता सती नवावों माथा ॥
जनकसुत अवनिधिया राम प्रिया लवमात, चरणकमल जेहि उन बसै सीता सुमिरै प्रात ॥