महादेव जी की पत्नी जगन्माता ने अपने पिता दक्ष के यज्ञकुण्ड में अपना शरीर-त्याग कर दिया, तो अगले जन्म में उन्होंने पर्वतराज हिमालय की पत्नी मैना के गर्भ से जन्म लिया। वहाँ वे पार्वती के नाम से जानी गयीं। पार्वती की इच्छा थी कि पतिरूप में उन्हें वे ही महादेव को प्राप्त हों, जो पूर्व जन्म में उनके पति थे। इसके लिए उन्होंने घोर तप भी किया, पर महादेवजी प्रसन्न नहीं हुए और उन्हें सफलता नहीं मिली।
पार्वती इतने पर भी निराश नहीं हुई। उन्होंने अनादिकाल से कृपा करने वाले गणेशजी का ध्यान किया। गणेशजी प्रसन्न होकर पार्वती के पास आये और जब उन्हें पार्वती की इच्छा का पता चला, तो उन्होंने पार्वती से गणेश चैथ व्रत एंव पूजन करने का परामर्श दिया।
परामर्श देकर गणेशजी चले गये। गणेशजी के परामर्श के अनुसार पार्वती ने गणेश चैथ का व्रत एंव पूजन किया। फलस्वरूप उन्हें भोले-भंडारी शिवजी प्रतिरूप में प्राप्त हो गये।
धर्मराज युदिष्ठिर ने भी अपना खोया राज्य प्राप्त करने के लिए इस व्रत को किया था। इस व्रत को करने से उन्हें अपना राज्य प्राप्त हो गया था।