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सीता नवमी : क्यों है इसका व्रत सुख और समृद्धि दायक ?

सीता नवमी वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन होती है, धार्मिक ग्रंथों के अनुसार इसी दिन सीता का प्राकट्य हुआ था, इस दिन को ’जानकी नवमी’ भी कहा जाता है, इस दिन वैष्णव संप्रदाय के भक्त माता सीता के निमित्त व्रत रखते हैं और पूजन करते हैं, माना जाता है कि जो भी व्यक्ति इस दिन व्रत रखता है व श्रीराम सहित सीता का विधि विधान से पूजन करता है, उस व्यक्ति को पृथ्वी दान का फल, सोलह महान दानों का फल तथा सभी तीर्थों के दर्शन का फल अपने आप मिल जाता है, अतः सीता नवमी के दिन व्रत करने का विशेष महत्व होता है।

सीता नवमी 2019 तिथिः-

सीता नवमी व्रत - सोमवार, 13 मई 2019
तिथि - 24 वैशाख, शुक्ल पक्ष, नवमी, विक्रम संवत
नवमी तिथि प्रारम्भ: रविवार 12 मई 2019, 17ः36 बजे 
नवमी तिथि समाप्त: सोमवार 13 मई 2019, 15ः20 बजे

माता सीता के जन्म की कथाः-

माना जाता है कि माता सीता का जन्म वैशाख शुक्ल नवमी को हुआ था, उन्हें जानकी भी कहते हैं क्योंकि उनके पिता राजा जनक हैं, धार्मिक ग्रंथों में माता सीता के प्राक्ट्य की कथा कुछ इस प्रकार है-

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मिथिला के राजा जनक थे, वह बहुत ही पुण्यात्मा थे, धर्म कर्म के कार्यों में बढ़ चढ़कर रूचि लिया करते थे, एक समय की बात है मिथिला में भयंकर अकाल पड़ा, इस अकाल ने राजा जनक को बहुत ही चिंतित कर दिया, अपनी आँखों के सामने अपनी प्रजा को भूखा मरते वह देख नहीं पा रहे थे, यह सब देखकर उन्हें बहुत पीड़ा होती थी और वह विचलित रहने लगे, राजा ने ज्ञानी महाज्ञानी पंडितों को दरबार में बुलवाया और इस समस्या का समाधान निकालने को कहा, सभी पंडितों ने अपनी अपनी राय राजा के सामने रखी, इनमें से बात यह निकलकर सामने आई कि यदि राजा जनक स्वयं हल चलाकर भूमि जोतें तो अकाल दूर हो सकता है, अपनी प्रजा की खुशी के लिये राजा जनक खुद हल उठाकर चल पड़े, वह दिन वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी का दिन था, जहां पर राजा ने हल चलाया वह स्थान वर्तमान में बिहार के सीतामढ़ी के पुनौरा राम गांव को बताया जाता है, राजा जनक जब हल जोत रहे थे तो हल चलाते चलाते एक जगह आकर हल अटक गया, उन्होंने पूरी कोशिश की मगर हल की नोंक ऐसी धंस गई कि निकल ही नहीं पा रही थी, राजा ने अपने सैनिकों को आदेश दिया कि वह यहां कि आसपास की जमीन की खुदाई करें और पता करें कि हल की नोंक कहां फंसी है, सैनिकों ने राजा के आदेश पर खुदाई करना शुरू कर दिया तो क्या देखा कि एक बहुत ही सुंदर और बड़ा सा कलश है जिसमें जाकर हल की नोंक उलझ गई है, उस कलश को बाहर निकाला गया तो देखा कि उसमें एक नवजात कन्या है, धरती माता के आशिर्वाद स्वरूप राजा जनक ने उस कन्या को अपनी पुत्री के रूप में स्वीकार किया, उसी समय मिथिला में बहुत ज़ोर से बारिश हुई और राज्य का अकाल दूर हो गया, जब कन्या का नामकरण किया गया तो क्योंकि हल की नोंक को सीता कहा जाता है और हल जोतने से ही वह कन्या उनके जीवन में आई थी तो राजा ने उसका नाम ’सीता’ रख दिया।

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सीता नवमी पूजन विधिः-

’सीता नवमी’ पर व्रत एंव पूजन हेतु अष्टमी तिथि को ही स्वच्छ होकर शुद्व भूमि पर सुंदर मंडप बनाएं, यह मंडप सोलह, आठ अथवा चार स्तम्भों का होना चाहिए, मंडप के मध्य में सुंदर आसन रखकर भगवती सीता एंव भगवान श्री राम की स्थापना करें।
पूजन के लिए स्वर्ण, रजत, ताम्र, पीतल, काठ एंव मिट्टी इनमें से सामर्थ्य अनुसार किसी एक वस्तु से बनी हुई प्रतिमा की स्थापना की जा सकती है, मूर्ति के अभाव में चित्र द्वारा भी पूजन किया जा सकता है।

नवमी के दिन स्नान आदि के पश्चात् जानकी राम का श्रद्वापूर्वक पूजन करना चाहिए, ’श्री रामाय नमः’ तथा ’श्री सीतायै नमः’ मूल मंत्र से प्राणायाम करना चाहिए, ’श्री जानकी रामाभ्यां नमः’ मंत्र द्वारा आसन, पाद्य, अध्र्य, आचमन, पंचामृत स्नान, वस्त्र, आभूषण, गंध, सिंदूर तथा धूप दीप एंव नैवेद्य आदि उपचारों द्वारा श्रीराम-जानकी का पूजन व आरती करनी चाहिए, दशमी के दिन फिर विधिपूर्वक भगवती सीता-राम की पूजा अर्चना के बाद मण्डप का विसर्जन कर देना चाहिए, इस प्रकार श्रद्धा व भक्ति से पूजन करने वाले पर भगवती सीता व भगवान राम की कृपा प्राप्ति होती है।

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