महर्षि वेदव्यास जी द्वारा रचित पवित्र ग्रन्थ महाभारत केवल एक घटना का वर्णन नहीं वरन एक संग्रह है महाबलशाली राजाओं और महारथियों का। इसमें ऐसा नहीं है कि केवल नायक ही बलशाली हो, खलनायक भी उनकी टक्कर के ही थे। शायद इसीलिए इतने बलशाली और अधर्मी योद्धाओं को मारने के लिए स्वयं नारायण को अवतार लेना पड़ा।
आज हम इस लेख में बात करने जा रहे हैं एक अत्यंत शक्तिशाली और अधर्मी राजा जरासंध की। जिसका जन्म जितना विचित्र था उतनी ही विचित्र उसकी मृत्यु थी। आइये जानते हैं जरासंध के विषय में-
कंस का ससुर था जरासंध :-
जरासंध मगध का राजा था, जो की वर्तमान में बिहार में स्थित है। वह एक क्रूर शासक और अधर्मी प्रवृत्ति का सत्ता लोभी था। उसने अपना साम्राज्य बढ़ाने के लिए कई राजाओं को युद्ध में परास्त किया और उनको अपने अधीन कर लिया। उसके भय के कारण कई राजाओं ने उसका अपने ऊपर अधिपत्य स्वीकार कर लिया था। वह एक कुशल राजनीतिज्ञ भी था, जो भी राजा उसे अपनी भांति शक्तिशाली प्रतीत होते थे उनसे वह संधि कर लेता था। ऐसे ही उसने कंस को शक्तिशाली जान उससे अपनी दो पुत्रियों का विवाह उससे करा दिया था। इस प्रकार से वह कंस का ससुर और परम मित्र बन गया था। जब श्री कृष्ण ने कंस का वध किया था तब उसने क्रोधित होकर कृष्ण से प्रतिशोध लेने के लिए 17 बार मथुरा पर आक्रमण किया था। किन्तु हर बार कृष्ण की कुशल राजनीती और युद्ध नीति से वह परास्त हो जाता।
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जरासंध का जन्म :-
मगध देश के राजा थे बृहद्रथ, उनकी दो पत्नियां थीं किन्तु उनकी कोई भी संतान नहीं थी। संतान प्राप्ति की कामना में वह एक ऋषि चंडकौशिक के पास जाकर उनकी सेवा करने लगे। उनके सेवा भाव से संतुष्ट होकर ऋषि ने उन्हें एक फल दिया और कहा अपनी पत्नी को इसे खिला देना, शीघ्र ही तुम्हे संतान प्राप्ति हो जायगी। वह फल लेकर महल आया और उसने फल को बीच से काटकर आधा आधा अपनी दोनों पत्नियों को खिला दिया। शीघ्र ही दोनों पत्नियां गर्भवती हो गयीं। और समय आने पर उन्होंने बालक को जन्म दिया, किन्तु यह बालक दोनों से आधा आधा जन्मा। उन आधे आधे शरीरों को देखकर सब भयभीत हो गए। राजा ने उन बालकों को व्यर्थ मान कर जंगल में फिकवा दिया। जंगल में उसे एक जरा नमक राक्षशी ने देख लिया, और अपनी माया से उन दोनों हिस्सों को जोड़कर एक कर दिया। एक हो जाने से बालक पूर्ण हो गया और ज़ोर ज़ोर से रोने लगा। जैसे ही राजा को पता चला वे दोनों रानियों समेत अपने बालक को लेने आ गए और जरा राक्षसी को धन्यवाद देने के लिए अपने पुत्र का नाम उसके नाम पर रख दिया, जरासंध अर्थात जरा द्वारा संधित।
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बनना चाहता था चक्रवर्ती सम्राट :-
जरासंध भगवान शंकर का परम भक्त था, और अपनी शक्तियां बढ़ाने के लिए वह मानव बलि चढ़ाता था। एक बार उसने विश्व विजयी अभियान के लिए 100 राजाओं को बलि के लिए कैद कर लिया। वह सभी राजाओ की बलि देना चाहता था, जिससे की वह चक्रवर्ती सम्राट बन जाए।
भीम ने किया था जरासंध का वध :-
श्री कृष्ण ने जरासंध को कई युद्ध में पराजित किया था, किन्तु उसे मृत्यु नहीं दी। इसके पीछे एक कारण था जरासंध जब तक अपने अपमान का बदला नहीं लेता तब तक आक्रमण करता ही रहता। और सभी पापियों को एकत्रित करता रहता था, जिससे की कृष्ण जी को बहुत सारे पापियों को एक साथ मारने का अवसर मिलता था। और उन्होंने उसे इसलिए भी नहीं मारा क्योकि वे उसकी मृत्यु भीम द्वारा करवाना चाहते थे।
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इसलिए श्री कृष्ण अर्जुन और भीम सहित ब्राह्मण के भेष में जरासंध के पास पहुंच गए और उसे कुश्ती के लिए ललकारा। जरासंध समझ गया कि कोई साधारण ब्राह्मण उससे कुश्ती नहीं कर सकता और इस प्रकार उसे केवल श्री कृष्ण ही चुनौती दे सकते हैं। उसने कृष्ण को पहचानते हुए अन्य दो का परिचय पुछा। तब श्री कृष्ण ने अर्जुन और भीम का परिचय उसे दिया। जरासंध ने कुश्ती की चुनौती स्वीकार कर ली।
जरासंध और भीम का युद्ध पूरे 13 दिनों तक चला, भीम ने कई बार जरासंध के दो टुकड़े कर दिए किन्तु वह माया से बार बार जुड़ जाता और जीवित हो जाता था। किन्तु चौदहवें दिन श्री कृष्ण ने भीम को तिनका तोड़ कर इशारा दिया की उसके शरीर के हिस्सों को विपरीत दिशा में फ़ेंक दें। भीम ने इशारा समझ कर जरासंध के दो टुकड़े कर उन्हें अलग अलग दिशाओं में दूर फेंक दिया। इस प्रकार उसकी मृत्यु हो गयी, और मगध का राजा श्री कृष्ण ने जरासंध के पुत्र को बना दिया।
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