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जानिए राधा अष्टमी का महत्व और पूजा विधि !

राधा अष्टमी :-

श्री कृष्ण की भक्ति प्रेम और रस की त्रिवेणी जब ह्रदय में प्रवाहित होती है तब मन स्वयं तीर्थ बन जाता है ! सत्यम शिवम सुंदरम का यह महाभाव ही राधा भाव कहलाता है ! आनंद ही उनका स्वरुप है ! कृष्ण प्रेम की सर्वोच्च अवस्था को राधा भाव ही कहा जाता है और उसी कृष्ण पिया के जन्म को राधा अष्टमी के नाम से भाद्रपद माह के शुकल पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है ! राधा अष्टमी के दिन श्रद्धालु वरसाना की उच्ची पहाड़ी पर स्तिथ गरवारवान की प्रकिमा करते है ! इस दिन वरसाना में बड़ी रौनक रहती है ! विभिन प्रकार के संस्कृतक कार्येक्रम का आयोजन किया जाता है ! धार्मिक गीतों और कीर्तन के साथ अपनी प्रिय राधा रानी के मन को लुभाने का भक्त प्रयास करते है !

राधा अष्टमी व्रत कथा और महत्व :-

राधा अष्टमी व्रत कथा राधा जी के जन्म से सम्बंदित है ! राधा जी वृषभानु की पुत्री थी ! राधा जी की माँ का नाम कीर्ति था ! पद्म पुराण में राधा जी को राजा वृषभानु की पुत्री बताया गया है ! इस ग्रांट के अनुसार जब राजा यज्ञे के लिए भूमि साफ कर रहे थे तब भूमि कन्या के रूप में इन्हे राधा जी मिली राजा ने इस कन्या को अपनी पुत्री मान कर लालन पालन किया ! इसके साथ ही यह कथा भी मिलती है की भगवान विष्णु ने कृष्ण अवतार में जन्म लेते समय अपने परिवार के अन्य सदस्यों से पृथ्वी पर अवतार लेने के लिए कहा तब विष्णु जी की पत्नी लक्ष्मी जी राधा के रूप में पृथ्वी पर आई ! ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार राधा जी कृष्ण जी की सखी थी ! लेकिन उनका विवहा रापन या रायण नाम के व्यक्ति के साथ सम्पन हुआ ! ऐसा कहा जाता है की राधा जी अपने जन्म के समय ही वयस्क हो गई थी ! वेद तथा पुराणादि में राधा जी को कृष्ण वलभा कहकर गुणगान किया गया है ! वही कृष्ण पिया है राधा जन्माष्ठमी कथा का श्रवण करने से भक्त सुखी , धनि और सर्वगुण सम्पन बनता है ! भक्ति पूर्वक श्री राधा जी का मंत्र जाप एवं स्मरण मोक्ष प्रदान करता है ! श्रीमत देवी भगवत श्री राधा जी की पूजा की अन्येवरता का निरूपण करते हुए कहते है की श्री राधा की पूजा ना की जाए तो भक्त श्री कृष्ण की पूजा का अधिकार नहीं रखते ! श्री राधा भगवान कृष्ण के प्राणों की अतिस्ठात्री देवी मानी गई है ! सत्ये है राधा बिना कृष्ण कहा और कृष्ण बिना कहा राधा !

 

राधा अष्टमी पूजा विधि :-

राधा अष्टमी के दिन शुद्ध मन से विध का पालन किया जाता है ! राधा जी की मूर्ति को पंचामृत से स्नान करवाते है ! स्नान करने के पश्चात उनका स्नान किया जाता है ! राधा जी को सोने या अन्य धातु से बनी मूर्ति को विग्ने में स्थापित करते है ! मध्यान के समय श्रद्धा तथा भक्ति से राधा जी की आराधना की जाती है ! धुप , दीप आदि से आरती करने के बाद अंत में भोग लगाया जाता है ! कई ग्रंथों में राधा अष्ठमी के दिन राधा कृष्ण की सयुक्त रूप से पूजा की बात भी कही गई है ! इसके अनुसार सबसे पहले राधा जी को पंचामृत से स्नान करवाना चाहिए ! फिर उनका विधि वत रूप से सृंगार करना चाहिए ! इस दिन मंदिर में 27 पेड़ों की पत्तियाँ और 27 ही कुओं का जल इकठा करना चाहिए और दूध , दही, शुद घी तथा ओषधियो से मूल शांति करानी चाहिए ! अंत में कई मन पंचामृत से वैदिक मंत्रो के साथ श्यामा श्याम का अभिषेक किया जाता है ! नारद पुराण के अनुसार राधा अस्थ्मी का व्रत करने वाले भक्तजन व्रिज के दुर्लब रहस्य को जान लेते है ! जो व्यक्ति इस व्रत को विधि वत तरीके से करता है ! वह सभी पापों से मुक्ति पा लेता है !