सद्गुरु जग्गी वासुदेव योग की दुनिया में एक प्रसिद्ध चेहरा हैं। वह एक योगी, रहस्यवादी, दर्शन और मानवतावादी हैं जिनके जीवन ने दुनिया भर में लाखों लोगों के जीवन को छुआ है। वह एक आध्यात्मिक नेता हैं जिन्होंने अपने जीवन को विभिन्न सामाजिक और सामुदायिक विकास गतिविधियों में समर्पित किया है और लोगों से अच्छी प्रतिक्रिया अर्जित की है।
सद्गुरु जग्गी वासुदेव |
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जन्म |
3 सितंबर, 1957(आयु 60) मैसूर, भारत |
जीवन चरित्र
सद्गुरु जग्गी वासुदेव का जन्म 3 सितंबर 1957 को कर्नाटक राज्य के मैसूर शहर में हुआ। उनके पिता एक डॉक्टर थे। बालक जग्गी को कुदरत से खूब लगाव था। अक्सर ऐसा होता था वे कुछ दिनों के लिये जंगल में गायब हो जाते थे, जहां वे पेड़ की ऊँची डाल पर बैठकर हवाओं का आनंद लेते और अनायास ही गहरे ध्यान में चले जाते थे। जब वे घर लौटते तो उनकी झोली सांपों से भरी होती थी जिनको पकड़ने में उन्हें महारत हासिल है। 11 वर्ष की उम्र में जग्गी वासुदेव ने योग का अभ्यास करना शुरु किया। इनके योग शिक्षक थे श्री राघवेन्द्र राव, जिन्हें मल्लाडिहल्लि स्वामी के नाम से जाना जाता है। मैसूर विश्वविद्यालय से उन्होंने अंग्रजी भाषा में स्नातक की उपाधि प्राप्त की।
आध्यात्मिक अनुभव
25 वर्ष की उम्र में अनायास ही बड़े विचित्र रूप से, इनको गहन आत्म अनुभूति हुई, जिसने इनके जीवन की दिशा को ही बदल दिया। एक दोपहर, जग्गी वासुदेव मैसूर में चामुंडी पहाड़ियों पर चढ़े और एक चट्टान पर बैठ गए। तब उनकी आंखे पूरी खुली हुई थीं। अचानक, उन्हें शरीर से परे का अनुभव हुआ। उन्हें लगा कि वह अपने शरीर में नहीं हैं, बल्कि हर जगह फैल गए हैं, चट्टानों में, पेड़ों में, पृथ्वी में। अगले कुछ दिनों में, उन्हें यह अनुभव कई बार हुआ और हर बार यह उन्हें परमानंद की स्थिति में छोड़ जाता। इस घटना ने उनकी जीवन शौली को पूरी तरह से बदल दिया। जग्गी वासुदेव ने उन अनुभवों को बाँटने के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित करने का फैसला किया। ईशा फाउंडेशन की स्थापना और ईशा योग कार्यक्रमों की शुरुआत इसी उद्देश्य को लेकर की गई तकि यह संभावना विश्व को अर्पित की जा सके।
जगदीश वसुदेव से योगी सद्गुरु
सद्गुरु का पहला आध्यात्मिक अनुभव 23 सितंबर, 1982 को हुआ था। यह कहा जाता है कि 25 वर्ष की आयु में वह चामुंडी पहाड़ियों पर चढ़े और एक चट्टान पर बैठ गए। और वहां उन्हें पहली बार आध्यात्मिक अनुभव हुआ। उन्होंने 1983 में मैसूर में सात प्रतिभागियों के साथ अपना पहला योग वर्ग आयोजित किया।
सद्गुरु ने अपने मोटरसाइकिल पर यात्रा करते हुए कर्नाटक और हैदराबाद में अपने योग कक्षाएं विकसित करना शुरू कर दिया। उन्होंने 1994 में नए स्थापित ईशा योग केंद्र के परिसर में पहला कार्यक्रम आयोजित किया। उन्होंने योग को योगिक ध्यान मंदिर, ध्यानलिंग के रूप में वर्णित किया है।
ईशा फाउंडेशन
सद्गुरु द्वारा स्थापित ईशा फाउंडेशन एक लाभ-रहित मानव सेवा संस्थान है, जो लोगों की शारीरिक, मानसिक और आतंरिक कुशलता के लिए समर्पित है। यह दो लाख पचास हजार से भी अधिक स्वयंसेवियों द्वारा चलाया जाता है। इसका मुख्यालय ईशा योग केंद्र कोयंबटूर में है। ग्रीन हैंड्स परियोजना (अंग्रेजी: Project GreenHands) ईशा फाउंडेशन की पर्यावरण संबंधी प्रस्ताव है। पूरे तमिलनाडु में लगबग 16 करोड़ पेड़ रोपित करना, परियोजना का घोषित लक्ष्य है। अब तक ग्रीन हैंड्स परियोजना के अंतर्गत तमिलनाडु और पुदुच्चेरी में 1800 से अधिक समुदायों में, 20 लाख से अधिक लोगों द्वारा 82 लाख पौधे के रोपण का आयोजन किया है। इस संगठन ने 17 अक्टूबर 2006 को तमिलनाडु के 27 जिलों में एक साथ 8.52 लाख पौधे रोपकर गिनीज विश्व रिकॉर्ड बनाया था। पर्यावरण सुरक्षा के लिए किए गए इसके महत्वपूर्ण कार्यों के लिए इसे वर्ष 2008 का इंदिरा गांधी पर्यावरण पुरस्कार दिया गया। वर्ष 2017 में आध्यत्म के आपको पदमविभूषण से भी समानित किया गया। अभी वे रैली फ़ॉर रिवर नदियों के संरक्षण के लिए अभियान चला रहे हैं ।
व्यक्तिगत जीवन
1999 में सद्गुरु द्वारा प्रतिष्ठित ध्यान लिंग अपनी तरह का पहला लिंग है जिसकी प्रतिष्ठता पूरी हुई है। योग विज्ञान का सार ध्यानलिंग, ऊर्जा का एक शाश्वत और अनूठा आकार है। 13 फीट 9 इंच की ऊँचाई वाला यह ध्यानलिंग विश्व का सबसे बड़ा पारा-आधारित जीवित लिंग है। यह किसी खास संप्रदाय या मत से संबंध नहीं रखता, ना ही यहाँ पर किसी विधि-विधान, प्रार्थना या पूजा की जरूरत होती है। जो लोग ध्यान के अनुभव से वंचित रहे हैं, वे भी ध्यानलिंग मंदिर में सिर्फ कुछ मिनट तक मौन बैठकर ध्यान की गहरी अवस्था का अनुभव कर सकते हैं। इसके प्रवेश द्वार पर सर्व-धर्म स्तंभ है, जिसमें हिन्दू, इस्लाम, ईसाई, जैन, बौध, सिक्ख, ताओ, पारसी, यहूदी और शिन्तो धर्म के प्रतीक अंकित हैं, यह धार्मिक मतभेदों से ऊपर उठकर पूरी मानवता को आमंत्रित करता है।