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स्वामी करुण दास (Swami Karun Daas Ji)

Biography

पूज्य श्री महाराज जी ने प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से अपने जीवन में ग्यारह संतों का संग किया व इन सब संतों को आप आज भी अपने गुरु रूप में स्वीकार करते हैं। पू. स्वामी श्रीकृष्णानंद जी महाराज ;वृन्दावनद्ध, पू. पंडित श्रीगयाप्रसाद जी ;गोवर्धनद्ध, पू. श्री इंजीनियर सरकार जी ;दरभंगा, बिहारद्ध, पू. ठाकुर श्रीघनश्यामदास जी ;वृन्दावनद्ध, पू. आचार्य चरण श्री श्रीजी महाराज ;सलेमाबाद, पुष्करद्ध व पू. श्री जगन्नाथ बाबा ;वृन्दावनद्ध का प्रत्यक्ष सत्संग व कृपा प्राप्त की तथा भाई श्री हनुमानप्रसाद पोद्दार जी ;गोरखपुरद्ध, पू. श्री राध बाबा ;गोरखपुरद्ध, पू. श्रीजयदयाल गोयन्दका जी ;गोरखपुरद्ध, पू. श्रीबालकृष्णदास जी महाराज ;वृन्दावनद्ध का अप्रत्यक्ष सत्संग व कृपा प्राप्त की।

 

स्वामी श्री करुण दास जी​

Swami Sri Karun Das Ji

जन्म

 करुण​
 22 फरवरी 1968  

 टोपरा कलां ग्राम, यमुनानगर, भारत

माता-पिता  श्री बलशेर सिंह और श्रीमती रेवती देवी

अनुक्रम

  • 1 जीवन चरित्र 
    2 जीवन तत्त्व और मार्गदर्शन 
  • 3 कार्य
    4 संदर्भ

 

जीवन चरित्र 

सर्वधर्म सद्भाव की प्रतिमूति, निकुंज उपासना के मूर्तिमान प्रकाश, ‘सेवा सुख’ मासिक पत्रिका के संस्थापक व राधकृष्ण परिवार सेवा ट्रस्ट के संस्थापक-संचालक परम पूज्य श्री महाराज जी ;स्वामी श्री करुण दास जी  का जन्म 22 फरवरी 1968 को हरियाणा में पंजाब, हिमाचल व उत्तरप्रदेश इन तीनों राज्यों की सीमा को छूता हुआ कलिन्द नन्दिनी श्री यमुना जी के पावन तट पर बसा हुआ जिला यमुनानगर के टोपरा कलां ग्राम में हुआ। यह ग्राम धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्रा के पूर्वी भाग तथा भगवती सरस्वती नदी व श्री यमुना नदी के बीच बसा हुआ है। यह कुरुक्षेत्र की पावन भूमि प्राचीन काल से ही ऋषि-मुनियों की साध्ना स्थली रही है। यमुनानगर जिला के प्राचीन तीर्थ आदिबद्री, भगवती सरस्वती नदी का उद्गम स्थल है। 

श्री महाराज जी बाल्यकाल से ही धार्मिक प्रवृत्ति के थे। पाठशाला में पढ़ते हुए कक्षा में पास होने पर प्रतिवर्ष अपने गाँव से साइकिल द्वारा दस किलोमीटर भगवती सरस्वती में स्नान करने जाया करते थे। इसके साथ-साथ पूज्य श्री महाराज जी प्रत्येक रविवार को भगवती वागेश्वरी सरस्वती जी के नाम से व्रत भी किया करते थे।

पिता श्री बलशेर सिंह व माता श्रीमति रेवती देवी को आपके माता-पिता होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आपके पूर्वज सिख मत के अनुयायी व पंजाब के रोपड़ के पास एक ग्राम के निवासी थे। बाद में हरियाणा में आ बसे। आप बाल्यकाल से ही धर्मिक व सहिष्णु स्वभाव के थे। बचपन से ही आपके व्यक्तित्त्व में सात्त्विक गुणों की अभिव्यक्ति होने लगी थी। बचपन में गीताप्रेस गोरखपुर से प्रकाशित भाई श्री हनुमानप्रसाद पोद्दार जी व सेठ श्री जयदयाल गोयन्दका की लिखी पुस्तकें बड़ी लगन से पढ़ते थे। इन पुस्तकों ने आपके हृदय में भक्ति-बीज अंकुरित कर दिया। पढ़ाई के साथ-साथ मन अधिकतर जप व चिंतन में व्यतीत होने लगा। संसार से उपरामता बढ़ती गई। जगत असार प्रतीत होने लगा। 

एक बार सोलह साल की आयु में बिना बताये अकेले घर से निकल पड़े हिमालय की ओर साध्ना करने। लेकिन प्रभु के अचिंतय विधन से दूसरे ही दिन घर लौटना पड़ा। घर लौट आने पर एक सूक्ष्म व्याकुलता आपके मन में बनी रही। विरह की अग्नि भीतर-ही-भीतर सुलगती रही। 

जीवन तत्त्व और मार्गदर्शन 

भक्त ध्रुव की कथा पढ़कर एक दिन सहसा बिना किसी को सूचना दिये चुपके से फिर घर से निकल पड़े। लेकिन अब की बार हिमालय के लिये नहीं, श्रीवृन्दावन धाम के लिये। रात्रि होने पर दिल्ली बस स्टेण्ड की ऊपरी मंजिल में भूखे लेट गये। कोई अपरिचित ;सम्भवतः श्रीठाकुर जी ही होंगे, उठाकर भोजन करा गये। अगले दिन बस द्वारा वृन्दावन पहुँचे।

तीन वर्ष वृन्दावन, फिर बारह वर्ष तक श्रीधाम बरसाना में निवास किया। बरसाना मान मन्दिर में गुफा कक्ष में तीन वर्ष तक साध्ना रत रहे। यहीं पर एक दिन भगवान् शिव ने स्वप्न में दर्शन देकर भगवान् श्रीकृष्ण के ऐश्वर्य रूप ;श्री विष्णुद्ध की शरणागति कराई व कुछ भविष्य की बातें भी बताई। जो बाद में पूज्य श्री महाराज जी के जीवन में घटित हुई।

कार्य 

मान मंदिर ;बरसानाद्ध में तीन वर्ष निवास के बाद तिलक बिहार कालोनी ;बरसानाद्ध में निज कुटिया बनाकर एकांत में नौ वर्ष साध्ना रत रहे। श्रीराधकृष्ण की उपासना करते हुए गुरु रूप में शिव आराध्ना भी चलती रही। इसी बीच पूज्य श्री महाराज जी को परम पूज्य भाई श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार जी ने अपने परमधम गमन के लगभग इक्कीस साल बाद प्रकट होकर पावन दर्शन व आशीर्वाद देकर कृतार्थ किया। इन्हीं दिनों स्वप्न में कई बार भाई श्री हनुमानप्रसाद पोद्दार व पूज्य श्री राध बाबा से रहस्य भरी वार्ता हुई जो कि आज तक महाराज श्री ने किसी को नहीं बताई।

अनन्त श्री विभूषित प्रातः स्मरणीय अर्चनीय वन्दनीय निम्बार्कपीठाधीश्वर पू. आचार्य चरण श्री ‘श्रीजी महाराज’ ;श्रीराधसर्वेश्वर शरणदेवाचार्य जी महाराजद्ध से दीक्षित होकर निकुंज वृन्दावन रसोपासना में आपने प्रवेश किया व पूज्य श्री इंजीनियर सरकार जी की आज्ञा से हरि नाम जप व हरि भक्ति के प्रचार के लिये श्री भक्तमाल गाथा व श्रीमद्भागवत कथा करने लगे।

आपने सन् 1999 में राधकृष्ण परिवार की स्थापना की जिसका उद्देश्य है ज्ञान, भक्ति और वैराग्य को भक्तों के हृदय में स्थापित कर परमारथ पथ की ओर प्रेरित करना व वृन्दावन बिहारी श्रीश्यामा श्याम के युगल चरण कमलों की प्रेमाभक्ति को प्राप्त कराना। 

आपका मुख्य आश्रम गिरिराज गोवर्धन की पावन तलहटी में राधकृष्ण परिवार के नाम से विख्यात है। वर्तमान में गत पंद्रह वर्षों से पूज्य श्री महाराज जी यहीं विराजते हैं। 

संदर्भ 

  1. स्वामी श्री करुण दास जी​
  2. Swami Sri Karun Das Ji Youtube

 

Amreesh Kumar Aarya (वार्ता) 11:31, 29 दिसम्बर 2017 (UTC)Amreesh Kumar Aarya

 

https://bhaktidarshan.in
[email protected]


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