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मीराबाई जयंती: कृष्ण दीवानी मीरा कैसे समा गयीं उनकी मूर्ति में?

मीरा बाई जयंती :-
13 अक्टूबर 2019 (रविवार)
521 वीं जयंती (लगभग)
पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ = 12:36 (13 अक्टूबर 2019)
पूर्णिमा तिथि समाप्त = 02:38 (14 अक्टूबर 2019)


मीराबाई जयंती :-
मीराबाई कृष्ण भक्ति शाखा की अत्यंत महत्वपूर्ण कवियित्री हैं। उनकी कृष्ण भक्ति अमिट-अमर है और उनकी कृतियों ने मीराबाई को भी अमर बना दिया। मीराबाई का जन्म संवत् 1504 विक्रमी में मेड़ता में रतन सिंह जी के घर पर हुआ था। बाल्यावस्था में एक बारात को आता देख मीराबाई ने अपनी माँ से पुछा की उनका दूल्हा कौन है, तब माँ ने उनकी बाल जिज्ञासा को शांत करने के लिए बोल दिया की तेरे पति श्री कृष्ण हैं। तब से मीराबाई ने श्री कृष्ण को अपना सब कुछ मान लिया, वे उनके लिए भजन गाती थीं, उनके सामने घुंघरू पहन कर नाचतीं थीं। 
बाद में उनका विवाह मेवाड़ के सिसोदिया राज परिवार में कर दिया गया। उदयपुर के महाराणा कुंवर भोज राज इनके पति थे, किन्तु विवाह के प्रथम दिन ही मीराबाई ने उन्हें बता किया की वे केवल कृष्ण को अपना पति मानती हैं। पहले तो उन्हें यह केवल परिहास लगा, किन्तु धीरे धीरे उन्होंने मीरा की कृष्ण के लिए भक्ति देखि और उन्हें विश्वास हो गया की मीरा केवल कृष्ण दीवानी हैं।

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विवाह पश्चात मीरा का जीवन:-
ऐसे तो मीरा का विवाह राजकुल में हुआ था, जहाँ कुलदेवी दुर्गा की पूजा होती थी। कित्नु मीराबाई ने कृष्ण के अलावा किसी और की पूजा करने से मन कर दिया। वह घर का काम काज निपटने के बाद घंटों मंदिर में बैठकर कृष्ण जी की मूर्ति के आगे भजन गाती थी, उनसे अपने सुख दुःख बांटती थीं। उनके इन कार्यों से उनके परिवार में उनके पति के अलावा बाकि सभी लोग उनसे क्रोधित होने लगे थे। 
कभी कभी मीरा कृष्ण भक्ति में तल्लीन होकर महल से बाहर निकल जाती तथा साधु संतों की टोली के साथ नाचने लगती थीं। किन्तु उनका इस तरह गलियों में नाचना उनके परिवार को अच्छा नहीं लगा। उन्होंने कई प्रकार से मीरा बाई को दुःख देने शुरू कर दिए, उनका बाहर आना जाना बंद कर दिया। 


पति की मृत्यु :-
कुछ समय पश्चात ही मीरा बाई के पति की एक युद्ध में मृत्यु हो गयी, परिवार वालों ने मीरा को सती होने के लिए ज़ोर दिया। किन्तु मीरा बाई के अनुसार उनके पति श्री कृष्ण थे, इसलिए वे सती नहीं हुईं। और मीरा बाई ने चोरी छुपे मंदिरों में जाना और वहा भजन गाना शुरू कर दिया। बाद में परिवार वालों ने उनपर व्यभिचारिणी होने का आरोप लगा दिया, उस समय इस पाप की सजा मृत्युदंड होती थी। इसलिए महल में मीरा को भरी सभा में जहर पीने को दिया गया। मीराबाई ने कृष्ण का नाम लेकर वह जहर भी पी लिया और महल से चलीं गयी। 
उनके भक्त उनके पीछे पीछे चल दिए, सबको लगा अब मीराबाई जीवित नहीं रहेंगी। किन्तु श्री कृष्ण की कृपा से उनपर जहर का कोई असर नहीं हुआ। किन्तु अपने परिवार की प्रताणनाओं से तंग आकर वह कृष्ण की मूर्ति में समा गयीं।

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मीराबाई की आध्यात्मिक रचनाएँ :-
मीराबाई के गुरु संत रैदास थे जो कि एक निम्न कुल के थे। किन्तु मीराबाई ने उनके कुल की परवाह न करके उन्हें ही अपना गुरु मान लिया। इसका विरोध वहां के उच्च कुलीन ब्राह्मणों ने भी किया, किन्तु मीरा पर इन सब का कोई असर नहीं हुआ। मीराबाई ने उनसे वीणा बजाना तथा संगीत की शिक्षा भी प्राप्त की थी।  मीरबाई ने राजस्थानी, ब्रज तथा गुजराती भाषाओँ में कई पदों की रचना की। उन्होंने कुल चार ग्रंथों की रचना की, जो इस प्रकार हैं -
1.    नरसी का मायरा
2.    गीत गोविन्द टीका
3.    राग गोविन्द
4.    राग सोरठ

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