ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या को बड़ सायत अमावस कहते हैं। बड़े सायत अमावस को बड़ की पूजा करते हैं। पानी, मौली, रोली, चावल, गुड़, भीगा हुआ चना फूल,सूत मिलाकर बड़ पर लपटेते हैं और फेरी देते है। बड़ के पत्तों का गहना बनाकर पहनते हैं। और बड़ सायत अमावस की कहानी सुनते हैं। भीगे हुए चनों में रूपये रखकर बायना निकालते हैं। फिर हाथ फेरकर सास के पैर छूकर बायना देते हैं। यदि किसी की बहिन, बेटी गाँव में हो, तो उसका भी बायना निकालने के लिए भेजना चाहिए।
बड़ सायत अमावस की कहानी
भद्र देश में अश्वपति नामक राजा था। जिसके संतान नहीं थी। उसने बड़े-बड़े पण्डितों को बुलाया और कहा- मेरे संतान नहीं है, इसलिए तुम ऐसा उपाय करो, जिससे मेरी संतान हो जाये। पण्डित बोले- भाई संतान तो तुम्हारे एक पुत्री लिखी है, जो 12 वर्ष की आयु में विधवा हो जायेगी। राजा ने कहा- क्या मेरा नाम नहीं रहेगा? बाद में खूब यज्ञ-हवन आदि कराये। यज्ञ-होम कराने से उसकी स्त्री गर्भवती हो गयी, तो पण्डितों ने उसकी जन्मपत्री देखकर कहा कि जिस दिन यह कन्या 12 वर्ष की होगी, उस दिन इसके विधवा हो जाने का योग हैं। इसलिए इससे पार्वतीजी और बड़ सायत अमावस की पूजा कराना। जब सावित्री बड़ी हुई, तो उसका विवाह सत्यवान के साथ कर दिया। सावित्री के सास-ससुर अन्धे थे। उनकी वह बहुत सेवा करती थी और सत्यवान जंगल से लकड़ी तोड़कर लाया करता था और सावित्री को पता था कि वह जिस दिन 12 वर्ष की होगी, उस दिन उसके पति की मृत्यु हो जायेगी। जिस दिन वह 12 वर्ष की हुई, उस दिन वह अपने पति से हाथ जोड़कर बोली- आज मैं भी आपके साथ चलूंगी।
सत्यवान बोला- तू मेरे साथ चलेगी, तो मेरे अन्धे माँ-बाप की सेवा कौन करेगा? यदि वह कहेंगे तो तुझे ले चलूंगा।
वह अपने सास-ससुर के पास गयी और जाकर बोली-आप कहें तो आज मैं जंगल देखने चली जाऊँ।
वे बोले अच्छी बात है, चली जा।
जंगल में जाकर सावित्री तो लकड़ी तोड़ने लगी और सत्यवान पेड़ की छाया में सो गया। उस पेड़ में साँप रहा करता था। उसने सत्यवान को डस लिया। सावित्री अपने पति को गोदी में लेकर रोने लगी। महादेव और पार्वतीजी वहाँ होकर जा रहे थे। सावित्री ने उनके पैर पकड़ लिये और बोली- मेरे पति को जिन्दा कर दो।
वे बोले कि आज बड़ सायत अमावस है, उसकी तू पूजा करेगी, तो तेरा पति जिन्दा हो जायेगा। फिर वह खूब प्रेम से बड़ की पूजा करने लगी। बड़ के पत्तों का गहना बनाकर पहना, जो हीरे - मोती के हो गये इतने में धर्मराज का दूत आ गया और उसके पति को ले जाने लगा। सावित्री ने उसके पैर पकड़ लिये। धर्मराज बोला कि तू वरदान माँग। सावित्री ने कहा कि मेरे मां-बा पके पुत्र नहीं हैं, वे पुत्रवान हो जायें। धर्मराज बोला कि सत्य वचन हो जायेगा। फिर बोली कि मेरे सास ससुर अन्धें है, उनकी नेत्रों में ज्योति आ जाये। धर्मराज ने यह वर भी दे दिया। सावित्री ने धर्मराज का पीछा नही छोड़ा। धर्मराज ने कहा- अब ओर तुम्हें क्या चाहिए? सावित्री ने कहा- मुझे 100 पुत्र हो जायें। धर्मराज बोला-तथास्तु। वह सत्यवसन को ले जाने लगे। तब सावित्री बोली कि हे महाराज! आप मेरे पति को ले जायेंगे, तो पुत्र कहाँ से होंगे? धर्मराज ने कहा- हे सती! तेरा सुहाग तो नहीं था, परन्तु बड़ सायत अमावस करने से और पार्वतीजी की पूजा करने से तेरा पति जीवित हो जायेगा। सारे में ढिंढोरा पिटवा दिया कि कहते-सुनते जेठ की अमावस आयेगी, तब बड़ की पूजा करना और बड़ के पत्तों का गहना बनाकर पहनना। बायना निकालना। हे महाराज! जैसे बड़ सायत अमावस ने सावित्री को सुहाग दिया, उसी प्रकार सबको देना। जो भी इस कहानी को कहता या सुनता है, उसकी सब मनोकामनाएँ पूर्ण होती है।
बड़ सायत अमावस को वट सावित्री व्रत और वर अमावस भी कहते है