Article

गायत्री जयंती: गायत्री मन्त्र से मिलती है गंगा स्नान जैसी पवित्रता !

देवी गायत्री का नाम सुनते ही विश्वविख्यात गायत्री मन्त्र याद आ जाता है। गायत्री मन्त्र का महत्व न केवल युगपुरुषों ने किया है वरन आज का विज्ञान भी इसकी महिमा गाता है। इस जगत में शुरू से ही मन्त्र जप सनातन धार्मिक परंपरा रहा है। पहले इसे केवल ईश्वर की साधना का साधन ही समझा जाता था, किन्तु इसके चमत्कार को आज की दुनिया भी मानती है। विज्ञान द्वारा भी यह सिद्ध किया जा चुका है कि गायत्री मन्त्र से न केवल मस्तिष्क प्रभावित होता है बल्कि शारीरिक क्रियाएं भी प्रभावित होती हैं। आइये जानते हैं सभी तत्वों की सार देवी गायत्री के विषय में -​

कौन हैं देवी गायत्री :-

गीता में भगवान् कृष्ण ने कहा है - "छंदों में छंद हैं देवी गायत्री", अर्थात देवी गायत्री से ही तीनों देवों की तथा तीनों लोकों की उत्पत्ति हुई है। इन्ही से चार वेदों का, ज्ञान तथा संगीत का भी प्राकट्य हुआ है। ये त्रिदेवों की आराध्य हैं तथा देवमाता कही जाती हैं। कुछ जनश्रुतियों में इन्हे ब्रह्मा जी की पत्नी भी कहा जाता है, किन्तु इसकी कोई प्रमाणिकता सिद्ध नहीं होती। ​

 

भक्ति दर्शन एंड्रॉयड मोबाइल ऐप डाउनलोड करने के लिए क्लिक करें

ब्रह्मा जी का गायत्री से विवाह :-

एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भगवान ब्रह्मा ने यज्ञ का आयोजन किया। मान्यता है कि धार्मिक कार्यों में पत्नी का सहभागी होना अत्यंत आवश्यक है, तभी यज्ञ का पुण्यफल मिलता है। किन्तु किसी कारणवश उनकी पत्नी सरस्वती उस स्थान पर नहीं थी। और यज्ञ का शुभ मुहूर्त निकल जाने से पूर्व यज्ञ करना आवश्यक था। इसलिए ब्रह्मा जी ने एक ऐसी देवी से विवाह कर लिया जो शास्त्र निपुण, ज्ञानी तथा चमत्कारी थीं, यह देवी गायत्री ही थीं। 
किन्तु यह केवल जनश्रुति है, जो जगह जगह पर बदल जातीं हैं। कुछ लोग देवी गायत्री की जगह देवी सावित्री तथा देवी सरस्वती के होने की भी बात करते हैं।

माता गायत्री का स्वरुप :- 

कथाओं में देवी गायत्री के स्वरुप में 5 सर व 10 हाथ होने का वर्णन है। उनके स्वरूप में चार सर चारों वेदों को दर्शाते है, व उनका पाचवां सर सर्वशक्तिमान शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है। देवी गायत्री का वाहन हंस है तथा वह कमल के ऊपर भी विराजती हैं। देवी के दस हाथ भिन्न भिन्न अस्त्र शस्त्र तथा वेदों से शोभायमान हैं। गायत्री जयंती ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी अर्थात ग्यारहवें दिन मनाई जाती है। इसका कारण यह है की महागुरु विश्वामित्र ने गायत्री मन्त्र से इस दिन सारी सिद्धियां प्राप्त की थीं तथा जनमानस के लिए इस मन्त्र की व्याख्या की थी। ​

गायत्री जयंती की तिथि :-

गायत्री जयंती की उत्पत्ति संत विश्वामित्र द्वारा हुई थी, उनका दुनिया में अज्ञानता दूर करने में विशेष योगदान रहा है। गायत्री जयंती गंगा दशहरा के दूसरे दिन आती है। कुछ लोगों के अनुसार इसे श्रवण पूर्णिमा के समय भी मनाया जाता है। श्रवण पूर्णिमा के दौरान आने वाली गायत्री जयंती को व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है। इस वर्ष गायत्री जयंती 13 जून 2019, दिन बृहस्पतिवार को मनाई जाएगी।

भक्ति दर्शन के नए अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक पर फॉलो करें

गायत्री की महिमा :-
 
सनातन धर्म में चार 'ग' का अत्यंत महत्व है- गायत्री, गीता, गंगा तथा गौ। यह चार किसी भी मानव के जीवन का आधार हैं। इनमे से भी गायत्री का स्थान प्रथम है, गायत्री मन्त्र को सबके लिए ही गुरु मन्त्र की उपाधि प्राप्त है। इसकी महिमा बड़े बड़े ऋषि मुनि तथा सिद्ध साधु ने मानी है। यह मन्त्र चार वेदों का सार है। वेदव्यास जी ने कहा है - "सिद्ध की हुई गायत्री कामधेनु के सामान है, गंगा शरीर के पापों को धोती है तथा गायत्री आत्मा को निर्मल करती है। "
रविंद्र नाथ टैगोर जी कहते हैं - "गायत्री मन्त्र के जप से मैंने वो सारी उपलब्धियां हासिल की जिसकी मुझे भी आशा नहीं थी।"
'अखिल भारतीय गायत्री परिवार' के संस्थापक पूज्य आचार्य श्री राम शर्मा जी ने कहा है- "गायत्री युग शक्ति है, अनगढ़ को सुगढ़ बनाने का साधन है। "​

गायत्री से बढ़कर पवित्र करने वाला मंत्र और कोई नहीं है। जो मनुष्य नियमित रूप से गायत्री का जप करता है वह हर प्रकार के पापों से मुक्त हो जाता है।