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जानिये ! विजया एकादशी व्रत का महत्व

विजया एकादशी  : शनिवार, 2 मार्च 2019

एकादशी तिथि प्रारम्भ - 1 मार्च प्रातः 08ः39  

एकादशी तिथि समाप्त - 2 मार्च प्रातः 11ः04

पारण (व्रत तोड़ने का) समय - प्रात: 06:51 से प्रात: 09:10

पारण तिथि के दिन द्वादशी समाप्त होने का समय - दोपहर 01:45 

विजया एकादशी का हमारे हिन्दू समाज में बहुत अधिक महत्व होता है, इस वर्ष विजय एकादशी शनिवार 2 मार्च 2019 को मनाई जाएगी, यह तिथि एक महत्वपूर्ण तिथि होती है, मान्यता है कि जो भी श्रद्वालु इस व्रत को विधिपूर्वक करता है उसे मन वांछित फल की प्राप्ति होती है, तथा सभी कार्यों में सफलता मिलती है, विजया एकादशी फाल्गुन माह की कृष्ण पक्ष की एकादशी के दिन मानी जाती है इस दिन व्रत करने से हमें अपने सभी जन्मों के पापों से छुटकारा मिलता है, इस एकादशी के नाम के अनुसार व्रती को अपने सभी कार्यों में विजय प्राप्त होती है |

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विजया एकादशी व्रत विधि :-

दशमी के दिन एक वेदी बनाकर उसमें सप्तधान रखना चाहिए, उसके उपरांत एक कलश बनाकर उस कलश पर स्थापित करें ये कलश अपनी इच्छानुसार सोने, चाँदी, तांबे या मिट्टी का भी ले सकते हैं, इस दिन भगवान विष्णु की मूर्ति की स्थापना करनी चाहिए, धूप, बाती, फल, फूल चढ़ाकर श्री हरि की पूजा पाठ, अर्चना करनी चाहिए, रात्रि के समय में अपने घर में ही भगवान हरि को याद करें तथा भजन कीर्तन संगीत इत्यादि भावपूर्वक करें, द्वाद्वशी वाले दिन कलश का दान करें तथा ब्राह्मणों को सात्विक भोजन कराएं, इसके पश्चात व्रत खोल लें, इस बीच आपको केवल सात्विक भोजन ही ग्रहण करना चाहिए तथा ब्रह्मचार्य का पालन अवश्य करना चाहिये। इस उपवास को पूरा करने से व्रती को हर स्थिति में सफलता प्राप्त होती है।

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विजया एकादशी व्रत कथा :-

यह उस समय की बात है जब द्वापर युग था, युधिष्ठिर के मन में इस दिन के महत्व को जानने की इच्छा हुई, उन्होंने भगवान श्री कृष्ण से समीप अपनी जिज्ञासा प्रकट की, फाल्गुन एकादशी के महत्व को बताते हुए श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर को ये कथा सुनाई। हे युधिष्ठिर ये कथा त्रेता युग से है जब श्री विष्णु भगवान ने श्री राम का अवतार लिया था, उस समय रावण ने अपने छल से सीता माता का हरण किया था, ये समाचार मिलने के बाद से ही श्री राम बहुत व्याकुल हो उठे, उन्होंने सुग्रीव की सेना के साथ लंका की ओर प्रस्थान किया लंका पहुँचने से पहले ही उनके रास्ते में एक विशाल समुद्र पड़ा जिसने उनका रास्ता रोक लिया, उस समुद्र में बहुत ही खतरनाक समुद्री जीव थे, वे समुद्री जीव वानर सेना के लिये उत्तम संकेत नहीं थे वे जीव उन्हें हानि भी पहुँचा सकते थे तथा उनके लिये खतरा थे।

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श्री राम इस कठिनाई से निकलने का उपाय सोचने लगे, वह लक्ष्मण के पास गये और उनसे इसका उपाय पूछा, वह बोले हे प्रभु आप तो अंर्तयामी हैं, मुझे भी कोई उपाय नहीं सूझ रहा इस परिस्थिति में, मैं आपको यही कहूँगा कि यहाँ से लगभग आधा योजन दूरी के बाद वकदालभ्य नामक एक मुनिवर निवास करते हैं, उनके पास अवश्य ही हमारी समस्या का कोई न कोई समाधान होगा, भगवान श्री राम उसी समय उनके पास पहुँचे और अपनी समस्या उनके सामने रखी, तब मुनिवर ने उन्हें फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का महत्व बताया, उन्होंने कहा कि अगर आप अपनी समस्त सेना के साथ उपवास रखें तो न केवल उस समुद्र को ही पार कर लेंगे साथ ही साथ इसके प्रभाव से आप लंका पर भी अवश्य विजय प्राप्त करेंगे। मुनि वकदालभ्य द्वारा बताया गया उपवास समय आने पर भगवान राम ने तथा संपूर्ण सेना ने एकादशी के दिन विधिपूर्वक रखा तथा रामसेतु बनाकर उस भयानक समुद्र को पार कर लिया साथ ही लंका में जाकर रावण से युद्व में भी विजयश्री प्राप्त की।      

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