भारत में माता सरस्वती के दो सबसे प्राचीन देवस्थल माने जाते हैं ’दंडकारण्य और लेह’ पहला देवस्थल आंध्र प्रदेश में स्थित है इसे ऋषि वेदव्यास जी ने बनाया था, आंध्र प्रदेश के आदिलाबाद जिले के मुधोल क्षेत्र में स्थित है बासर गांव।
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गोदावरी के तट पर स्थित इसी गांव में है माता सरस्वती जी का अति विशाल मंदिर, माँ सरस्वती जी का ऐसा ही दूसरा मंदिर भी है जो जम्मू कश्मीर के लेह में स्थित है, इनके अलावा मैहर की माँ शारदा का भी मंदिर जग प्रसिद्ध है, परन्तु माता शारदा का निवास दंडकारण्य और लेह में माना जाता है।
बासर गांव में स्थित मंदिर के विषय में कहा जाता है कि महाभारत के रचयिता ऋषि वेदव्यास जी जब अपनी मानसिक उलझनों में उलझे हुए थे तो वह शांति यात्रा के लिये तीर्थ यात्रा पर निकल पड़े थे, वह अपने मुनि वृंदों सहित उत्तर भारत की तीर्थ यात्राओं को पूर्ण करते हुए दंडकारण्य (बासर का प्राचीन नाम) पहुँचे, उन्हें वहाँ गोदावरी तट का सौंदर्य दिखा जिसे देखकर वह कुछ समय के लिये वहीं पर रूक गये।
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सरस्वती माता के मंदिर से थोड़ी दूरी पर स्थित दत्त मंदिर से होते हुए मंदिर तक गोदावरी नदी में कभी एक सुरंग हुआ करती थी उस सुरंग द्वारा उस समय के महाराजा पूजा करने के लिये आया जाया करते थे।
रामायण लेखन प्रारम्भ करने से पूर्व यहीं वाल्मीकि ऋषि ने माता सरस्वती जी को प्रतिष्ठित करके उनका आर्शीवाद प्राप्त किया था, वाल्मीकि जी की संगमरमर की समाधि इसी मंदिर के निकट बनी हुई है।
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मंदिर के गर्भगृह, गोपुरम, परिक्रमा मार्ग आदि इसकी निर्माण योजना का हिस्सा हैं, मंदिर की केंद्रीय प्रतिमा सरस्वती जी की है, लक्ष्मी माता की प्रतिमा भी साथ ही विराजित हैं, माता सरस्वती जी की प्रतिमा पद्मासन मुद्रा में 4 फुट ऊँची है।
इस मंदिर के एक स्तंभ में से संगीत के सातों स्वर सुने जा सकते हैं, यहाँ की विशिष्ट धार्मिक रीति अक्षर आराधना कहलाती है, विद्या अध्ययन प्रारम्भ कराने से पूर्व अक्षराभिषेक हेतु इनमें से बच्चों को लाया जाता है और खाने में हल्दी का लेप दिया जाता है।
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इस मंदिर के पूर्व में निकट ही एक महाकाली का मंदिर है और एक गुफा भी है जो लगभग एक सौ मीटर की दूरी पर है, यहां एक अनगढ़ सी चट्टान भी है, यहाँ सीता जी के आभूषण रखे हुए हैं, बासर गांव में 8 ताल हैं जिन्हें वाल्मीकि तीर्थ, विष्णु तीर्थ, गणेश तीर्थ व पुथा तीर्थ कहते हैं।
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