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परिवर्तिनी एकादशी: जानिए क्यों होती है इस दिन वामन अवतार की पूजा!

परिवर्तिनी एकादशी मुहूर्त :-

परिवर्तिनी एकादशी = 29 अगस्त 2020

एकादशी तिथि प्रारंभ = 08:38 बजे से (28 अगस्त 2020)

एकादशी तिथि समाप्त = 08:17 बजे तक (29 अगस्त 2020)

पारण का समय = 05:58 से 08:21 बजे तक (29 अगस्त 2020)

एकादशी के सर्वश्रेष्ठ व्रत भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए किये जाते हैं। एकादशी का व्रत करने वालों पर वे अपनी कृपा दृष्टि बनाकर रखते हैं। एकादशी व्रती को शुभ फल तथा उसके पापों से मुक्ति देती है। वैसे तो हर वर्ष 24 एकादशियाँ आती हैं किन्तु अधिकमास में यह बढ़कर 26 हो जाती हैं। प्रत्येक माह में दो एकादशियाँ आती हैं, और प्रत्येक एकादशी का अपना अपना महत्व होता है। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को 'परिवर्तिनी एकादशी' कहा जाता है, इसे 'पार्श्व' अथवा 'वामन एकादशी' भी कहते हैं। देवशयनी एकादशी के बाद ही भगवान् विष्णु चार माह के लिए विश्राम करने लगते हैं और फिर देवउठनी एकादशी के दिन ही जागते हैं। किन्तु मान्यता है कि इन सब के बीच वह परिवर्तिनी एकादशी के दिन अपनी करवट बदलते हैं।

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परिवर्तिनी एकादशी का महत्व :-

परिवर्तिनी एकादशी का व्रत करने से मनुष्य को अनंत पुण्यों की प्राप्ति होती है, यह व्रत वाजपेयी यज्ञ से मिले पुण्य के बराबर है। इस कई नामों से जाना जाता है जैसे पार्श्व एकादशी, वामन एकादशी, जयंती एकादशी, जयझूलनि तथा डोलग्यारस। इस दिन विष्णु जी की पूजा का विधान है और विशेषतः उनके वामन अवतार की आराधना इस दिन की जाती है। एकादशी मोक्ष प्रदायिनी है, इसका व्रत करने से मनुष्य को जन्म के बंधनों से मुक्ति मिलती है तथा पूर्व जन्म में अथवा अनजाने में हुए पापों से मुक्ति दिलाता है।

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 परिवर्तिनी एकादशी पूजन विधि :- 

एकादशी के एक दिन पूर्व से ही सात्विक भोजन करना चाहिए तथा एकादशी के दिन प्रातःकाल जल्दी उठकर नित्यकर्मों से निपट कर स्नान आदि करना चाहिए। इसके बाद स्वच्छ स्थान पर विष्णु स्थापना कर के हाथ में जल लेकर व्रत का संकल्प करना चाहिए। इस दिन विष्णु के वामन रूप की पूजा की जाती है, इसलिए वामन अवतार की प्रतिमा भी हो तो उत्तम है। धूप, दीप, नैवेद्य, मिष्ठान, फल, बतासे तथा पुष्पों से पूजा  करनी चाहिए और अंत में घी के दीपक से आरती उतारनी चाहिए। विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ भी उत्तम है। इस दिन निंदा, झूठ और क्रोध से दूर रहना चाहिए और दिन भजन कीर्तन में ही व्यतीत करना चाहिए। दूसरे दिन व्रत का पारण ब्राह्मण भोज करा कर करना चाहिए किन्तु जो लोग दो दिन तक भूखे नहीं रह सकते वे रात्रि में संध्या पूजन के बाद भोजन ग्रहण कर सकते हैं। इस दिन फलाहार ही करें तो उत्तम है।  

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